इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानून में निर्धारित उचित प्रक्रिया के जरिए भूमि का अधिग्रहण किए बगैर निजी भूमि का उपयोग करने के खिलाफ राज्य के अधिकारियों को चेतावनी दी है. जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस अनीष कुमार गुप्ता की पीठ ने कहा कि निजी भूमि का कब्जा लेते समय किसी तरह की त्रुटि या नियमों की अनदेखी होने के मामले में इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा, और यह मुआवजा उनके निजी खाते से वसूला जाएगा.
बरेली जनपद की कन्यावती नाम की एक महिला की रिट याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि प्रदेश के अधिकारियों को सचेत रहने की जरुरत है कि उन्हें अधिग्रहण की उचित प्रक्रिया अपनाए बगैर नागरिकों की भूमि का उपयोग नहीं करना चाहिए, अन्यथा ऐसे अधिकारियों को निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा और अदालत को उन पर भारी जुर्माना लगाना पड़ेगा जो उनके निजी खाते से वसूला जाएगा.
कन्यावती ने बरेली जनपद में एक भूखंड खरीदा था और भूमि खरीदते समय राजस्व के रिकॉर्ड में भूखंड के दक्षिण में एक चक रोड दर्ज थी. बाद में सड़क चौड़ी की गई और कन्यावती के भूखंड का एक हिस्सा, उसे बगैर मुआवजा दिए ले लिया गया. सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत सूचना मांगने पर याचिकाकर्ता को बताया गया कि उसकी जमीन के लिए कोई अधिग्रहण प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. मुआवजा के लिए अधिकारियों को कई बार प्रत्यावेदन देने के बावजूद याचिकाकर्ता को कोई मुआवजा नहीं मिला.
इसके बाद, कन्यावती ने हाई कोर्ट का रुख किया जहां बरेली के जिलाधिकारी को 12 मई, 2016 के सरकारी आदेश के संदर्भ में मुआवजा की पात्रता निर्धारित करने के लिए इस मामले को जिला स्तरीय समिति के पास भेजने के निर्देश के साथ याचिका निस्तारित कर दी गई. जिला स्तरीय समिति ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया कि शुरुआत में चक रोड तीन मीटर चौड़ी थी और दोनों तरफ ढाई मीटर अतिरिक्त सड़क उपलब्ध थी, इसलिए सड़क 1.25 मीटर चौड़ी करने से किसी के व्यक्तिगत अधिकार का हनन नहीं हुआ.
इसके बाद याचिकाकर्ता ने मौजूदा रिट याचिका दायर की. अदालत ने कहा कि शुरुआती चक रोड 20 वर्ष पूर्व चीनी उद्योग और गन्ना विकास विभाग द्वारा विकसित की गई थी जिसे याचिकाकर्ता की भूमि का कुछ हिस्सा अधिग्रहण कर चौड़ा किया गया. तहसीलदार की रिपोर्ट देखने के बाद हाई कोर्ट ने कहा, "एक व्यक्ति की भूमि, उचित मुआवजे का भुगतान किए बगैर अधिग्रहित नहीं की जा सकती। सार्वजनिक उद्देश्य के लिए एक नागरिक की संपत्ति का अधिग्रहण कानून के मुताबिक उचित मुआवजा के भुगतान पर ही किया जा सकता है."
इलाहाबाद ने पाया कि याचिकाकर्ता ने इधर उधर चक्कर लगाया और वह कानून के मुताबित मुआवजा प्राप्त करने की पात्र है. हाई कोर्ट ने चार मार्च, 2025 को दिए अपने निर्णय में जिला स्तरीय समिति को याचिकाकर्ता की अधिग्रहित की गई भूमि का मुआवजा निर्धारित करने और ब्याज सहित इसका चार सप्ताह के भीतर भुगतान करने का निर्देश दिया.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)