हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक गर्भवती महिला को छह घंटे तक थाने में बिठाकर रखने पर उत्तर प्रदेश पुलिस पर एक लाख रूपये का जुर्माना लगाया है. फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि महिला को हुई पीड़ा की अनदेखी नहींं की जा सकती है. साथ ही अदालत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को महिलाओं से जुड़े मामले की जांच में अपनाई जानेवाली सावधानियां और दिशानिर्देशों को जारी करने का निर्देश दिया है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश गर्भवती महिला के पति द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका पर आई है, जिसमें उसने पुलिस कस्टडी से पत्नी की रिहाई की मांग की है. पुलिस ने गर्भवती महिला को उसके भाई द्वारा 2021 में दर्ज कराए गए अपहरण के मुकदमा के चलते हिरासत में लिया.
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी और जस्टिस एआर मसूदी ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeous Corpus) याचिका पर सुनवाई करते हुए गर्भवती महिला को हुई परेशानी के लिए एक लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही महिला को उसके पति को सौंपने का आदेश दिया है.
अदालत ने कहा,
"पीड़िता (महिला) को हुए कष्ट और उसके व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकारों के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उसके साथ हुए अनुचित उत्पीड़न के लिए उचित मुआवजा मिलना चाहिए."
अदालत ने जांच अधिकारी (IO) द्वारा पीड़िता और उसके दो वर्षीय बेटे को हिरासत में लेने के निर्णय पर आपत्ति जताया है. अदालत ने इस कार्यवाही के दौरान पुलिस अधिकारी द्वारा जांच डायरी साथ नहीं रखने पर आपत्ति नहीं जताई है.
डीजीपी को निर्देशित है कि वह जांच अधिकारियों को महिलाओं से जुड़े मामलों को सावधानी और सतर्कता से निपटाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करे. इस आदेश के अनुपालन की पुष्टि करने वाला हलफनामा दस दिनों के भीतर अदालत में प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को 11 दिसंबर 2024 के लिए दिन के लिए सूचीबद्ध किया है.
गर्भवती महिला को पिछले महीने पुलिस ने उसके भाई द्वारा 2021 में आगरा में दर्ज की गई प्राथमिकी (FIR) को लेकर गिरफ्तार किया.
FIR के अनुसार, महिला 14 अगस्त 2021 को आगरा कॉलेज में परीक्षा देने जाने के बाद घर नहीं लौटने की सूचना दी थी, उस समय महिला 21 वर्ष की थी और एक अंडरग्रैजुएट छात्रा थी. पुलिस ने महिला के पति के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया गया, जबकि दंपति ने महिला के लापता होने की सूचना के एक दिन बाद शादी की. अदालत ने इस पर भी हैरानी जताई कि केवल तीन साल में इस केस में केवल सूचनाकर्ता का बयान दर्ज किया गया है.
आईओ ने दोबारा से जांच शुरू की और पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन ले आया.
कोर्ट ने IO के व्यवहार पर सवाल उठाया, यह देखते हुए कि जब पुलिस वहां पहुंची तो महिला के घर पर कोई पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था. अदालत ने कहा कि पुलिस को जांच करते समय सतर्क रहना चाहिए, जहां IO ने सही तरीके से कार्य नहीं किया.
पुलिस कार्रवाई में खामियां पाते हुए अदालत ने महिला को मुआवजा और महिला में जांच करने को लेकर डीजीपी को दिशानिर्देश जारी करने को कहा है. साथ ही अगली सुनवाई में इस कार्रवाई के बारे में अवगत कराने को कहा है.