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भ्रष्टाचार में लिप्त है जज, दावा करनेवाले शख्स को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अवमानना का दोषी पाया, सुना दी ये सजा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देवेंद्र कुमार दीक्षित नामक शख्स पर ₹2,000 का जुर्माना लगाया है, जो उन्हें एक महीने के भीतर उच्च न्यायालय के सीनियर रजिस्ट्रार के पास जमा करना होगा.

इलाहाबाद हाई कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : March 25, 2025 7:40 PM IST

Contempt of Court: हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति पर अदालत की अवमानना (Contempt of Court) का दोषी ठहराते हुए ₹2,000 का जुर्माना लगाया है. मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ब्रिज राज सिंह की पीठ ने देवेंद्र कुमार दीक्षित को 2016 में झूठा आरोप लगाने का दोषी पाया. जुर्माना लगाते वक्त अदालत ने कहा कि यह उनके उम्र और पहली गलती को ध्यान में रखकर यह जुर्माना लगाया है. बता दें कि आरोपी शख्स ने दावा किया था कि हाई कोर्ट के जजों ने उसकी याचिका को खारिज करने के लिए पैसे लिए हैं.

अदालत की अवमानना मामले में शख्स दोषी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2000 रूपये जुर्माना लगाते हुए यह भी कहा कि शख्स ने माफी का हलफनामा नहीं दाखिल किया था, जो उसके दोषी ठहराए जाने का एक कारण बना. हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे आरोप अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते हैं.

अदालत ने कहा,

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"हम दीक्षित को इस न्यायालय के प्रति आपराधिक अवमानना का दोषी मानते हैं जैसा कि अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी)(1) में वर्णित है."

हालांकि, न्यायालय ने उनकी आयु और यह कि यह उनका पहला अपराध है, को ध्यान में रखते हुए केवल ₹2,000 का जुर्माना लगाया. उन्हें यह राशि उच्च न्यायालय, लखनऊ के वरिष्ठ रजिस्ट्रार के पास एक महीने के भीतर जमा करनी होगी। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें एक सप्ताह की साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी.

आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति को लिखी थी चिट्ठी

दीक्षित के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया 2016 में हाई कोर्ट के तत्कालीन कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश (Acting Chief Justice) के आदेश के बाद शुरू किया गया था. दीक्षित ने न्यायालय में कहा कि उन्होंने यह शिकायत भारत के राष्ट्रपति को की थी और उन्हें नहीं पता था कि यह उच्च न्यायालय तक कैसे पहुंची. दीक्षित ने अदालत से राष्ट्रपति भवन द्वारा भेजे गए पत्र की प्रति की मांग की. हालांकि, हाई कोर्ट ने उसकी मांग को ठुकराते हुए कहा कि वह पत्र अवमानना की प्रक्रिया से संबंधित नहीं है. इस वर्ष जनवरी में, हाई कोर्ट ने दीक्षित के खिलाफ आरोप तय किए. दीक्षित ने फिर से पत्र की प्रति की मांग की, यह कहते हुए कि उसे अपने मामले को साबित करने के लिए इसकी आवश्यकता है. 5 मार्च को, न्यायालय ने मामले की अंतिम सुनवाई की और निर्णय सुरक्षित रखा.

24 मार्च को दिए गए निर्णय में, हाई कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने पहले ही उसकी मांग को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि दीक्षित ने स्वयं अपनी शिकायत की सामग्री को स्वीकार किया था. हाई कोर्ट ने कहा, "इसलिए, यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी किया गया पत्र आवश्यक नहीं है." हाई कोर्ट ने दीक्षित की शिकायत की सामग्री को पढ़ने के बाद फैसला सुनाया कि यह स्पष्ट रूप से आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आता है. ऐसा करके दीक्षित ने अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, जो न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है.

Contempt of Court Act की धारा 2 सी (i)

अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) की धारा 2(सी)(1) न्यायालय की अवमानना को परिभाषित करती है, जिसमें न्यायालय के आदेशों की अवहेलना, न्यायालय को बदनाम करना, या न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप शामिल है.

केस टाइटल: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम देवेंद्र कुमार दीक्षित