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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव समेत दो दर्जन बीएसए के खिलाफ तय किये आरोप

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव और कई सारे बीएसए के खिलाफ आरोप तय किये हैं. जानें किन मुद्दों के आधार पर, किस तरह के आरोप तय किये गए हैं

Allegations Against Basic Education Council Secretary by Allahabad Hugh Court

Written by My Lord Team |Published : May 27, 2023 1:34 PM IST

प्रयागराज (उप्र): इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अदालत के आदेश की अवमानना करने और मृतक सहायक अध्यापकों के आश्रितों के लिए ग्रैच्युटी के भुगतान में विलंब करने के लिए बेसिक शिक्षा परिषद (Uttar Pradesh Basic Education Council) के सचिव प्रताप सिंह बघेल (Pratap Singh Baghel) के खिलाफ गुरुवार को आरोप तय किए।

समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार अदालत ने सचिव के अलावा, विभिन्न जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों (BSA) के खिलाफ भी आरोप तय किए हैं। अनेक अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल (Justice Rohit Ranjan Agarwal) ने यह आदेश पारित किया।

मृतक सहायक अध्यापकों के आश्रितों के लिए ग्रैच्युटी के भुगतान में हुआ विलंब: इन याचिकाओं में सहायक अध्यापकों और उनके आश्रितों को ग्रैच्युटी के भुगतान को लेकर अदालत के आदेश की अवमानना का आरोप लगाया गया है।

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सचिव के खिलाफ आरोप तय करते हुए अदालत ने कहा कि अदालत बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव के इस बयान से हतप्रभ है कि सरकारी आदेश जारी होने के बाद सरकारी तंत्र हरकत में आया और ब्याज के साथ ग्रैच्युटी की रकम का भुगतान किया जा रहा है।

भाषा की कॉपी के मुताबिक, अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय, भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सभी राज्य अधिकारियों पर लागू होता है और ये अधिकारी किसी सरकारी आदेश की प्रतीक्षा नहीं कर सकते।

बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव के खिलाफ अदालत की टिप्पणी: भाषा की एक रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने बघेल के खिलाफ भी टिप्पणी की और कहा कि पिछले डेढ़ साल से यह अदालत बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव से प्रयागराज में अपने कार्यालय जो कि प्रधान सीट है, में आने का अनुरोध करती रही है लेकिन वह प्रयागराज के कार्यालय में नहीं आ रहे।

ऐसा करने की जगह वो ज्यादातर समय लखनऊ में अपने कैंप कार्यालय में बिता रहे हैं। अदालत ने बेसिक शिक्षा के प्रमुख सचिव और महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वो इस मामले को उच्चतम स्तर पर उठाएं और आवश्यक कार्रवाई करें।

अदालत ने कही ये बातें

समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, अदालत ने कहा कि जब एक बार ग्रैच्युटी भुगतान से जुड़े मामले पर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय किया जा चुका है तो मुकदमे दायर किए जाने से राज्य पर खर्च ही बढ़ रहा है जो वास्तव में करदाताओं का पैसा है।

अदालत ने कहा कि ये एक सख्त मामला है जहां एक अध्यापक की मृत्यु होने पर उसकी विधवा पत्नी और कानूनी वारिस अपना भुगतान लेने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटक रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह भुगतान पहले बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा रोका जाता है और इसके बाद वित्त एवं लेखा अधिकारियों (बेसिक शिक्षा) द्वारा रोका जाता है।

इन अधिकारियों को भी ठहराया दोषी

अदालत ने कहा कि वित्त एवं लेखा अधिकारी भी राशि का भुगतान नहीं किए जाने में दोषी हैं क्योंकि वे बाधा खड़ी करते हैं और अनावश्यक आपत्ति लगाते हैं. इतना ही नहीं, जब तक उनके लिए कुछ अच्छा नहीं किया जाता है, वो मामले को दबाए बैठे रहते हैं।

अदालत ने कहा कि एक बार फाइल इन दो अधिकारियों के पास से गुजरने के बाद मामला ट्रेजरी स्तर पर लटका दिया जाता है तथा शिक्षा विभाग के इन अधिकारियों द्वारा गरीब वासियों को हर स्तर पर परेशान किया जा रहा है।

अदालत ने बेसिक शिक्षा के प्रमुख सचिव और महानिदेशक को इन अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में इस अदालत को सुनवाई की अगली तिथि दो अगस्त को अवगत कराने का निर्देश दिया।