अक्सर लोगों के मन में डर बैठा होता है कि अगर किसी ने उनका नाम जानबूझकर गलत केस में डाल दिया, तो उन्हें नौकरी मिलने में परेशानी होगी. नौकरी मिलने में परेशानी तब आपके खिलाफ बेहद संगीन अपराध का मामला दर्ज हो और जब नियोक्ता (Employer) आपसे नजदीकी पुलिस स्टेशन से कैरेक्टर सर्टिफिकेट (Character Certificate) बनवाने को कहेगा. हाईप्रोफाईल नौकरियों में बैकग्राउण्ड वेरिफिकेशन विभागीय स्तर पर ही होती है. एक ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के सामने आया, जिसमें एक व्यक्ति को कांस्टेबल (Constable) के पद पर बहाल करने से इंकार कर दिया गया था. वजह थी कि व्यक्ति ने अपने खिलाफ दर्ज एक अपराधिक मामले (Criminal Case) को छिपाया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस सलिल राय ने 2015 की पुलिस भर्ती के संबंध में बलिया पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) के निर्देश को रद्द करते हुए कहा कि किसी चयनित उम्मीदवार को केवल आपराधिक मामले का खुलासा न करने के कारण नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता. बलिया पुलिस अधीक्षक ने कांस्टेबल पद पर चयनित आशीष कुमार राजभर को नियुक्ति देने से मना कर दिया था, क्योंकि आशीष राजभर अपने ऊपर दर्ज हुए अपराधिक मामले का खुलासा नहीं किया था.
अदालत ने कहा कि अपराधिक मामले का खुलासा न करना यानिगैर-प्रकटीकरण को अयोग्यता के रूप में दिखाना अन्यायपूर्ण है. अदालत ने याची आशीष कुमार राजभर को 15 दिसंबर 2024 तक नियुक्ति देने का आदेश दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि उसे नियुक्ति की तिथि से वेतन और लाभ मिलते रहें.
आशीष राजभर को उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड द्वारा 2015 में कांस्टेबल पद के लिए चुना गया था. इस विज्ञापन के जरिए सेलेक्टेड कैंडिडेट को अपने खिलाफ दर्ज अपराधिक मामले को बताने के निर्देश दिए गए. याची ने भी हलफनामा के माध्यम से अपना पक्ष रखा. उसने दावा किया कि उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं है. फिर उसने दूसरा हलफनामा डाला, जिसमें खुलासा किया कि उसके खिलाफ अप्रैल, 2017 में एक मुकदमा दर्ज हुआ था. हलफनामें के बाद जिलाधिकारी ने नौकरी को लेकर अपनी सहमति जताई थी, लेकिन बलिया एसपी ने उसे मानने से इंकार कर दिया. आशीष राजभर ने बलिया एसपी के फैसले को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने नियुक्ति के आदेश दिए हैं.