सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट और अधीनस्थ अदालत के उस आदेश को खारिज किया जिसमें हत्या के आरोपी को नाबालिग घोषित किया गया था. अदालत ने कुटुंब रजिस्टर और मतदाता सूची के आधार पर माना कि 2011 में आरोपी बालिग था. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि मुकदमे की सुनवाई जुलाई 2026 तक पूरी की जाए.
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने संज्ञान लिया कि आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड ने तीन साल पूरे होने पर रिहा कर दिया था और उसे तीन सप्ताह के भीतर अधीनस्थ अदालत में पेश होने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि वह मामले में जमानत लेने के लिए स्वतंत्र होगा. पीठ ने कहा कि यद्यपि आरोपी ने जिस स्कूल में पहले पढ़ायी की है उसके द्वारा जारी प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 18 अप्रैल, 1995 दर्ज है, लेकिन उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के तहत बनाए गए कुटुंब रजिस्टर में उसका जन्म वर्ष 1991 दर्ज है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2012 की मतदाता सूची में उसकी आयु 1 जनवरी, 2012 को 22 वर्ष दर्शायी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसकी शिकायत पर हत्या के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें हाई कोर्ट के मार्च 2016 के फैसले को चुनौती दी गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के तहत आरोपी को किशोर घोषित करने के अधीनस्थ अदालत के आदेश को बरकरार रखा था. पीठ ने कहा कि कैराना पुलिस थाने में दर्ज मामले में आरोपी पर बालिग की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है. पीठ ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह प्राथमिकता के आधार पर, जुलाई 2026 के अंत तक, मुकदमे की सुनवायी पूरी करे.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)