इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज की याचिका पर सुनवाई करते वक्त सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) हैरान रह गया, जब सुनवाई कर रही पीठ को बताया गया कि हाईकोर्ट सेवानिवृत जज को पेंशन के रूप में छह से पंद्रह हजार रूपये मिल रहे हैं. यह सच्चाई कितनी हैरान करने वाली है, जब किसी भी हाईकोर्ट के जज सुनवाई को निकलते हैं तो उनके पीछे सुरक्षा काफिला निकलता है, पीछे कई सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं. ऐसे में जब किसी दिन सुनने को मिले कि रिटायर जज को मात्र 6 से 15 हजार रूपये तक की पेंशन मिल रही हो. अगर थोड़ा और सोचे तो यह मामला तो जजशिप सेवा की तटस्थता तक को चुनौती दे सकती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने विषय की गंभीरता समझते हुए मामले की सुनवाई को तैयार हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) से रिटायर जज की याचिका पर सुनवाई की. उन्होंने कहा कि उन्हें पेंशन के तौर पर मात्र 15 हजार रूपये मिल रहे हैं. अदालत के सामने यह भी कहा गया कि रिटायर्ड जजों को 6000 रुपये की मामूली पेंशन (Pension's Amount) के तौर पर दिए जा रहे हैं.
रिटायर जज ने बताया कि वे 13 साल तक जूडिशल ऑफिसर (Judicial Officer) के तौर पर सेवा देने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज बने थे, जिसे पेंशन का हिसाब लगाते वक्त अधिकारियों ने विचार करने से इंकार कर दिया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिक्रियास्वरूप कहा कि हमारे सामने ऐसे मामले मौजूद हैं, जिसमें हाईकोर्ट के रिटायर जजों को पेंशन के तौर पर 6 हजार से लेकर 15 हजार रूपये तक पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं. ऐसा कैसे संभव हैं? यह अविश्वसनीय है.
पेंशन से जुडे ही एक अन्य मामले की सुनवाई करते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि हाईकोर्ट से रिटायर होनेवाले जजों को एकसमान वेतन देना चाहिए. पेंशन तय करने में इस आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता कि वे जिला अदालत से प्रमोट होकर हाईकोर्ट में आए हैं. अदालत ने सेवानिवृत होने वाले जजों के पेंशन का कैलकुलेशन जज के आखिरी वेतन के आधार पर करने कहा था.
जस्टिस बीआर ने विशेष रूप से इस बात को रखा कि हर हाईकोर्ट में जजों के लिए रिटायरमेंट के बाद की सुविधाएं अलग-अलग हैं और कुछ राज्यों ने बेहतर सुविधाएं दी हैं. उक्त टिप्पणी के साथ पीठ ने मामले की सुनवाई को 27 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया है.