Advertisement

'सुनवाई का अवसर दिए बिना कार्रवाई कैसे...', SC ने एडवोकेट के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश पर लगाया रोक

महिला एडवोकेट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जिस मामले में उसके खिलाफ अदालत ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं, उसमें वह ना तो पार्टी है, ना ही किसी का प्रतिनिधित्व कर रही है.

कोर्टरूम में महिला वकील (सांकेतिक चित्र)

Written by Satyam Kumar |Published : December 18, 2024 2:07 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अधिवक्ता के खिलाफन अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) करने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट को उसकी पक्ष रखने का मौका नहीं देना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Natural Justice) के खिलाफ है. महिला एडवोकेट के खिलाफ यह कार्रवाई अपने मुवक्किल की पुनरीक्षण याचिका (Review Petition) दाखिल करने में एक दिन की देरी के चलते की गई. इस प्रोफेशनल चूक के चलते उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ बार काउंसिल को अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश दिए थे. एडवोकेट दुष्यंत मैनाली (Dushyant Mainali) ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के इसी फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. याचिका में अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही फैसला सुना दिया है.

किसी को सुने बिना दोषी नहीं ठहराया जा सकता: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने महिला एडवोकेट की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के रवैये की आलोचना की. अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट को अपीलकर्ता (दुष्यंत मैनाली) की अनुपस्थिति में उस पर लगाए आरोपों को रिकॉर्ड पर नहीं रखा जाना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

Also Read

More News

"न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुसार, किसी को बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. यह बात दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी अदालतें इन सिद्धांतों के प्रति बाध्य हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बात रखने का मौका देने का यह सिद्धांत सभी न्यायिक प्रक्रियाओं में अनिवार्य है. अदालतों को सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को सुनने का अवसर देना चाहिए.

फैसले को महिला एडवोकेट ने SC में दी चुनौती?

इस मामले में महिला एडवोकेट दुष्यंत मैनाली ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. एडवोकेट ने अपील में कहा कि जिस मामले में उसके खिलाफ अदालत ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं, उसमें वह ना तो पार्टी है, ना ही किसी का प्रतिनिधित्व कर रही है. साथ ही बहस के दौरान अदालत ने उसे अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया, जो कि प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ है.