सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक जज की वकीलों को लेकर की गई टिप्पणी को अनुचित करार देते हुए उसे रिकार्ड से हटाने के आदेश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस की टिप्पणी को अवैध करार देते हुए कहा कि जस्टिस ने पहले भी ऐसा किया था जब सुप्रीम कोर्ट को ही बीच-बचाव करना पड़ा था, ऐसे में हमें उनकी टिप्पणियों को रद्द करने को लेकर अधिक विचार करने की जरूरत नहीं है. बता दें कि वकीलों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट जस्टिस की उनके प्रति टिप्पणी और याचिका पर दिए गए फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. आइये जानते हैं वकीलों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा...
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि जज ने पहले भी 2021 में एक वकील के खिलाफ कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं और उसे इसी अदालत ने हटाया था. पीठ ने कहा कि हम वकीलों के खिलाफ इतनी गंभीर बात पर टिप्पणी करने में हाईकोर्ट के जज की प्रवृत्ति को अस्वीकार करते हैं. इस तथ्य को देखते हुए कि उसी जज की धारणा पहले ही नीरज गर्ग (2021 के फैसले) में देखी जा चुकी है, हमें इस मामले में भी जज द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की फिर से जांच करने की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 1 दिसंबर, 2020 और 7 दिसंबर, 2021 के उच्च न्यायालय के दो आदेशों को खारिज कर दिया कि वे अधिवक्ता के आचरण से संबंधित हैं और अपीलकर्ता (उच्च न्यायालय के एक अभ्यासरत वकील) के खिलाफ की गई टिप्पणियों को आर्डर कॉपी से हटा दिया है.
पीठ ने 24 सितंबर के अपने आदेश में कहा कि हमने 1 दिसंबर, 2020 और 7 दिसंबर, 2021 के आदेशों को देखा है और उन स्थितियों की सावधानीपूर्वक जांच की है जिनमें जज द्वारा टिप्पणियां की गई थीं. जज द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद, हम इस राय पर पहुंचे हैं कि न तो आचरण और न ही परिस्थिति के कारण टिप्पणियों को दर्ज करना उचित था. ये टिप्पणियां अनुचित और अवैध हैं. वकील ने आदेशों में की गई टिप्पणियों को हटाने और आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
(खबर पीटीआई भाषा के इनपुट के आधार पर लिखी गई है.)