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जेल में बंद अभियुक्त की पिछले 102 तारीख पर नहीं हुई पेशी, SC ने बॉम्बे हाईकोर्ट और महाराष्ट्र सरकार को हल ढूढ़ने का दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट और महाराष्ट्र सरकार से अभियुक्तों की पेशी सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली विकसित करने का निर्देश दिया है, जिसका उद्देश्य अभियुक्तों को शारीरिक रूप से या डिजिटल माध्यम से सुनवाई में पेशी की व्यवस्था करेगी.

वर्चुअल हाजिरी लगाने का तंत्र

Written by My Lord Team |Published : December 23, 2024 3:57 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट और महाराष्ट्र सरकार से अभियुक्तों की पेशी सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली विकसित करने का निर्देश दिया है, जिसका उद्देश्य अभियुक्तों को शारीरिक रूप से या डिजिटल माध्यम से सुनवाई में पेशी की व्यवस्था करेगी. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक अभियुक्त की जमानत याचिका पर आया, जिसे पिछले छह सालों में 102 तारीखों में से अदालत के समक्ष हाजिर नहीं किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत देने से इंकार करने के बंबई हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर विचार करते हुए कहा कि एक दुखद स्थिति नजर आ रही है, क्योंकि अपीलकर्ता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधीनस्थ अदालत के समक्ष पेश नहीं किए जाने के कारण मामले की सुनवाई लंबी खिंच रही है. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए आरोपी को जमानत दिया है.

अभियुक्तों की पेशी के लिए नई प्रणाली विकसित करें: SC

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को बताया गया कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, बल्कि कई मामलों में ऐसी कठिनाई उत्पन्न होती है.

पीठ ने कहा,

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“इसलिए, हम बंबई उच्च न्यायालय के महा पंजीयक, महाराष्ट्र राज्य के गृह सचिव और महाराष्ट्र राज्य के विधि एवं न्याय सचिव को निर्देश देते हैं कि वे एक साथ बैठकर एक तंत्र विकसित करें जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अभियुक्तों को प्रत्येक तिथि पर या तो भौतिक रूप से या डिजिटल माध्यम से अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए और अभियुक्तों के पेश न होने के आधार पर सुनवाई को लंबा न खींचने दिया जाए.”

अदालत ने 18 दिसंबर को पारित अपने आदेश में उल्लेख किया कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से पता चला है कि पिछले छह वर्षों में, 102 तारीखों में से अधिकांश तारीखों पर आरोपी को अदालत के समक्ष भौतिक रूप से या डिजिटल माध्यम से पेश नहीं किया गया था. पीठ ने कहा कि इतनी देरी पीड़ित के अधिकारों के हित में भी नहीं है. पीठ ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर अपना फैसला सुनाया जिसमें महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के प्रावधानों के तहत दर्ज एक मामले में अपीलकर्ता की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और अपीलकर्ता को 50,000 रुपये के बांड और इतनी ही राशि के एक या अधिक जमानतदारों पर जमानत दे दी. अदालत ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता नियमित रूप से प्रत्येक तिथि पर विशेष न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होता रहेगा.