आरक्षण (Reservation) भारत में सबसे महत्वपूर्ण और ज्वलनशील मुद्दा है. आरक्षण देने को लेकर भी कई अनबूझ समस्या भी सामने आ रही है. समाजिक संरचनाओं के बदलते दौर में अंतरजातीय विवाह (Intercaste Marriage) से नई समस्याएं पैदा हो रही है. अब समस्या थी कि इन शादी से उत्पन्न हुए बच्चे को आरक्षण मिलेगा या नहीं या किसकी जाति के आधार पर उसका जाति सर्टिफिकेट (Caste Certificate) बनेगा. मां या पिता बच्चे की जाति किसकी जाति के आधार पर होगी. इसी तरह मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेषाधिकार शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अहम फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट एक गैर-दलित महिला और दलित पुरूष की तलाक की मांग को स्वीकार करते हुए उनके विवाह से उत्पन्न हुए बच्चे को अनुसूचित जाति के टैग देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने मामले को सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया है.
पीठ ने कहा,
"महिला अनुसूचित जाति के व्यक्ति से अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र नहीं बनवा सकती है, लेकिन बच्चों को अनुसूचित जाति का टैग मिलेगा."
बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के अपने फैसले को दुहराते हुए कहा कि जाति जन्म से तय होती है, शादी करके इसे बदला नहीं जा सकता है. मामला उस दंपत्ति से जुड़ा है जो पिछले ग्यारह साल से एक-दूसरे अलग रह रहे हैं. तलाकी की स्वीकृति देने के लिए पति एकमुश्त (One Time Settlement Alimony) 42 लाख रूपये पत्नी को देगा, साथ ही बच्चों की पीजी तक की पढ़ाई का खर्चा अदालत ने पिता को ही उठाने को कहा है.
तलाक मामले को स्वीकृति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पति को सख्त रूप से कहा कि वह अपनी पत्नी को रायपुर वाली एक प्लॉट देगा और अगले साल तक इस्तेमाल के लिए निजी दोपहिया वाहन खरीद कर देगा. वहीं, महिला को अपने बच्चे से पति को समय-समय पर मिलने देगी.