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वकील को केस देने के बाद 'वादी' का काम पूरा नहीं हो जाता, मुकदमे पर नजर भी रखना होता है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील पर दोष मढ़ने की 'अस्वस्थ परिपाटी' को खारिज करते हुए कहा कि वकील को वकालतनामा सौंपने के बाद वादी को मामले पर नजर रखने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता. वादी को वकील के संपर्क में रहने के सबूत दिखाने और यह साबित करने की आवश्यकता है कि उसे गुमराह किया गया.

दिल्ली हाईकोर्ट

Written by My Lord Team |Published : December 31, 2024 8:07 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने अदालत पहुंचने में लापरवाही या देरी के लिए वकील को दोषी ठहराने की परिपाटी को लेकर पुरजोर असहमति जताते हुए कहा है कि किसी वकील को मुकदमा लड़ने के लिए वकालतनामा दे देने मात्र से कोई वादी अपने मामले पर नजर रखने की सारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता है. दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील पर दोष मढ़ने की परिपाटी को 'अस्वस्थ' बताते हुए कहा कि अगर कोई मुवक्किल (वादी) केस में देरी होने को लेकर अपने वकील के खिलाफ शिकायत करता है तो उसे वकील के साथ लगातार संपर्क में रहने को सिद्ध करने के लिए पुख्ता सबूत देना होगा.

वकील रखने के बाद वादी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता: HC

जस्टिस सी हरिशंकर और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने में देरी पर स्पष्टीकरण मांगते हुए विधिज्ञ परिषद में शिकायत दर्ज कराना आसान है, लेकिन वादी को पूरी अवधि के दौरान वकील के संपर्क में रहने के स्वीकार्य और पुख्ता सबूत दिखाने चाहिए तथा साथ ही यह साबित करना होगा कि उसे गुमराह किया गया.

पीठ ने कहा,

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‘‘अदालत का रुख करने में लापरवाही का बोझ वकील के कंधों पर डालने की प्रथा... ऐसी परिस्थितियों में विधिज्ञ परिषद के समक्ष शिकायत दर्ज कराना और देरी के लिए स्पष्टीकरण मांगना आसान है. हम इसकी निंदा करते हैं. एक बार जब मामला वकील को सौंप दिया जाता है तो वादी मामले पर नजर रखने की सारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता.’’

अदालत ने मामले को देख रहे वकील पर दोष मढ़ने की अस्वस्थ परिपाटी को खारिज कर दिया.

क्या है मामला?

पीठ एक सेवा विवाद में छह साल की देरी के बाद केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal) के आदेश के खिलाफ दी गई चुनौती पर विचार कर रही थी. याचिकाकर्ता ने सोहना के एक दूरस्थ गांव में एक सामाजिक रूप से वंचित और अशिक्षित परिवार से होने का दावा किया और अदालत से इस आधार पर देरी को माफ करने का अनुरोध किया कि उसके मामले के खारिज होने के बाद उसने एक वकील से संपर्क किया, जिसने उसे फर्जी तारीखें देकर गुमराह किया.

याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि वह वित्तीय कठिनाइयों से पीड़ित था, इसलिए वह वकील द्वारा दी गई तारीखों पर व्यक्तिगत रूप से मामले को आगे बढ़ाने में असमर्थ था और जब वह अगस्त में वकील से मिलने गया, तो उसने पाया कि हाईकोर्ट में कोई मामला दायर नहीं किया गया था और उसने जिला बार एसोसिएशन, गुड़गांव में शिकायत दर्ज कराई.

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि वह उसके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है.

न्यायालय ने कहा,

‘‘अदालत को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि वास्तव में वकील मुवक्किल को गुमराह कर रहा है और यही कारण है कि अदालत में आने में देरी हुई. बेशक, यदि अदालत संतुष्ट है और एक निर्दोष वादी को एक वकील द्वारा गुमराह किया गया है, तो अदालत अन्याय नहीं होने देगी और उचित मामले में देरी को माफ कर देगी.’’

यदि अदालत संतुष्ट है कि वकील ने मुवक्किल को गुमराह किया है, तो वह उचित मामले में देरी को माफ कर सकती है. हालांकि, वकील के खिलाफ शिकायत को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है.