Gandhiji Gram Swaraj: गांधी जी ने ग्राम स्वराज की कल्पना की थी, जिसे त्रिस्तरीय शासन प्रणाली के तौर पर भी जाना जाता है. मुखिया, सरपंच और प्रमुख का चुनाव इसी ग्राम स्वराज योजना की देन है. अब आखिर ऐसी क्या बात हुई कि केरल हाई कोर्ट (Kerala HC) के जस्टिस ने इसे हटाने की मांग की है. आखिर इस गवर्नेंस मॉडल में क्या खामियां निकलकर सामने आई, क्या हुआ. आइये जानते हैं पूरा वाक्या...
केरल हाई कोर्ट के जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक ने हाल ही में कहा कि आज के शासन की चुनौतियां पहले से कहीं अधिक जटिल हो गई हैं. उन्होंने गांधी जी द्वारा परिकल्पित ग्राम पंचायत प्रणाली को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उनका मानना है कि स्थानीयकरण और विकेंद्रीकरण ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए हैं. यह बयान न्यायालय में सार्वजनिक रूप से दिया गया, हालांकि जस्टिस ने स्पष्ट किया कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है. जस्टिस मुस्ताक ने कहा कि आज के शासन में स्थानीय प्राधिकरण के लिए चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. उन्होंने उदाहरण के तौर पर नगर नियोजन और अपशिष्ट प्रबंधन का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि इन समस्याओं को निपटाने के लिए हमें एक केंद्रीकृत प्राधिकरण की आवश्यकता है. उनके अनुसार, पहले केवल छोटे मुद्दों को हल करना था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है.
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस मुस्ताक ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह और जस्टिस पी कृष्ण कुमार एक बेंच राज्य सरकार द्वारा दायर अपीलों पर विचार कर रहे थे. ये अपीलें 2024 के एकल-न्यायाधीश के निर्णय के खिलाफ थीं, जिसने आठ नगरपालिकाओं में सीमांकन प्रक्रिया को अवैध घोषित किया था. एकल-न्यायाधीश ने यह भी कहा कि 2015 में स्थानीय निकायों का सीमांकन 2011 की जनगणना पर आधारित था, और 2024 में किए गए संशोधन अनुचित थे. अपनी बात रखने के लिए जस्टिस ने एर्नाकुलम जिले में अपशिष्ट प्रबंधन के विकेंद्रीकृत प्रणाली की विफलता का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि हर पंचायत अपशिष्ट प्रबंधन नहीं कर सकती, इसके लिए एक बड़ी संस्था होनी चाहिए जो पूरे जिले या बड़े क्षेत्रों का प्रबंधन करे. उन्होंने बताया कि एर्नाकुलम जिले में विभिन्न स्थानीय निकायों के बीच समन्वय की कमी के कारण समस्याएं बढ़ रही हैं.
जस्टिस मुस्ताक ने कहा कि स्थानीय दृष्टिकोण के कारण राजस्व संग्रहण, जैसे कि संपत्ति और भवन कर, पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. उन्होंने बताया कि ग्राम स्वराज की अवधारणा के अनुसार, छोटे मुद्दों को हल किया जा सकता था, लेकिन अब शासन की जटिलता में पिछले कुछ दशकों में भारी बदलाव आया है. उन्होंने सुझाव दिया कि अब हमें अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि 1950 के दशक में जो हमने परिकल्पित किया था, वह 2025 में वैसा नहीं रह सकता. उनका मानना है कि दूरदराज के गांवों में चुने गए प्रतिनिधियों से भी उचित सेवाएं प्रदान नहीं की जा रही हैं. जस्टिस मुस्ताक की टिप्पणियां गवर्नेंस के भविष्य की दिशा को लेकर जोर देकर कहा कि वर्तमान में शासन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है ताकि यह बढ़ती समस्याओं की जटिलताओं का सामना कर सके. यह विचारशीलता न केवल केरल के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है. यदि हम अपने शासन को प्रभावी बनाना चाहते हैं, तो हमें गांधी जी की पुरानी अवधारणाओं को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.