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Mahatma Gandhi Murder Case: नाथूराम गोडसे को फांसी, आरोपों से बरी हुए सावरकर, जानें Red Fort Court का फैसला

महात्मा गांधी मर्डर केस में पुलिस ने 12 लोगों को आरोपी बनाया. वहीं स्पेशल कोर्ट रेड फोर्ट ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी, चार गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, विष्णु करकरे, दत्तात्रेय परचुरे को उम्रकैद, सावरकर को बरी और दिगंबर बडगे को रिहा किया था.

Written by Satyam Kumar |Updated : November 17, 2024 3:09 PM IST

आजादी के वक्त देश के सबसे बड़े पॉलिटिकल लीडर 'महात्मा गांधी' की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. दुखद घटना आजादी मिलने के महज छह महीने बाद हुई थी. महात्मा गांधी मर्डर केस के मुख्य आरोपी नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी. इसी दिन नाथूराम गोडसे के साथ सह-आरोपी नारायण आप्टे को भी फांसी की सजा दी गई थी. फांसी के तख्त पर झूलने से पहले नाथूराम गोडसे के मुख से आवाज आई अखंड भारत, वहीं नारायण आप्टे ने नारे को पूरा करते हुए कहा अमर रहे. जीवनलीला समाप्त होने के बाद अंबाला सेंट्रल जेल परिसर में ही दोनों का अंतिम संस्कार किया गया. बाद में दोनों की अस्थियों को घग्घर नदी में बहा दिया गया. साल 1949 में फांसी इसी नवंबर महीने के 15 तारीख को दी गई थी. बता दें कि यह आर्टिकल जज आत्मा चरण स्पेशल कोर्ट, रेड फोर्ट की जजमेंट कॉपी के आधार पर लिखी गई है. मामला द क्रॉउन बनाम नाथूराम विनायक गोडसे एवं अन्य है (नाथूराम गोडसे एवं अन्य बनाम क्राउन).

घटना, पड़ताल और अदालत की स्थापना

20 जनवरी 1948. महात्मा गांधी बिरला हाउस में शाम की प्रार्थना हो रही थी. तभी प्रार्थना सभा के 150 मीटर दूर एक बम फटने की आवाज आती है, बम फटने की जगह से दूर एक आदमी खड़ा होता है, जो खुद ही पुलिस को सरेंडर कर देता है. मदनलाल पाहवा (आरोपी नंबर 4) होते हैं. पुलिस ने सर्च किया तो उनके पास से हैंड ग्रेनेड भी मिला. FIR दर्ज की गई. विस्फोटक पदार्थ अधिनियम (Explosive Substance Act) की धारा 4 और 5 तहत, प्रार्थना सभा में मौजूद फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट केएन सहनी के समक्ष दर्ज किया गया. अब ठीक इस घटना के दस दिन बाद यानि 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजे, महात्मा गांधी प्रार्थना सभा में आ चुके थे, लोगों की भीड़ ने उन्हें सभा केन्द्र में जाने के लिए जगह दे रही थी, तभी भीड़ से एक व्यक्ति निकलकर प्वाइंट ब्लैंक रेंज से तीन गोलियां मारता है. महात्मा गांधी 'हे राम' कहते हुए जमीन पर गिर जाते हैं. यह व्यक्ति गांधी हत्या के मुख्य आरोपी नाथूराम गोडसे थे.

महात्मा गांधी मर्डर केस की सुनवाई लाल किले के ऊपरी मंजिल पर हुई थी. ऐसा समझिए कि शिमला स्थित पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय का ज्यूडिशियल क्षेत्र बढ़ाते हुए इस मामले की सुनवाई दिल्ली के लाल किले में की गई. रेड फोर्ट स्पेशल कोर्ट की स्थापना, बॉम्बे पब्लिक सिक्योरिटी मेजर्स एक्ट, 1947 के तहत की गई, जिसके दायरे को गृह मंत्रालय की स्वीकृति के बाद दिल्ली प्रांत तक बढ़ाया गया था. वहीं ट्रायल के लिए नाथूराम विनायक गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु आर. करकरे, दिगंबर आर. बड़गे, मदनालाल के. पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल वी. गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर को मुंबई से और डॉ. दत्तत्रेय सदाशिव परचुरे, जो ग्वालियर जेल में बंद थे, दिल्ली लाया गया. इन सभी कैदियों को लाल किले के स्पेशल एरिया में बंद किया गया था. दिगम्बर बड़गे को 21-06-1948 को सरकारी गवाह (approver) बनने पर ताज (Crown) की ओर से क्षमा प्रदान किया गया था. वहीं शंकर किस्तैया ने अदालत को बताया कि वो दिगंबर बडगे के नौकर है, उनकी बातों को मानने को बाध्य थे.  अदालत ने अपराधिक साजिश का दोषी माना, बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया गया था.

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अभियोजन पक्ष का 'घटनाक्रम'

महात्मा गांधी की हत्या को लेकर अभियोजन पक्ष ने अदालत के सामने प्राथमिकी व चार्जशीट के माध्यम से पूरा घटनाक्रम रखा है. पुलिस ने दावा किया कि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे, हिंदू महासभा के सदस्य है, दोनों के राजनीतिक विचार एक-से हैं. विष्णु करकरे अहमदनगर के रहनेवाले हैं, हिंदू महासभा के सदस्य है. ये तीनों लोग एक-दूसरे को लंबे से जान रहे थे. मदनलाल पाहवा एक रिफ्यूजी है, जो पहले विष्णु करकरे के संपर्क में आया, बाद में उसकी दोस्ती नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे से हुई. दिगंबर बडगे पूणा में शस्त्र भंडार चलाया करते थे, पहले आर्म्स ट्रैफिकिंग मामलों में भी उनका नाम शामिल था. शंकर किस्तैया दिगंबर बडगे के नौकर थे. गोपाल गोडसे, नाथूराम गोडसे के भाई थे. वहीं, दामोदर विनायक सावरकर हिंदू महासभा के पूर्व अध्यक्ष थे. दत्तात्रेय परचुरे ग्वालियर में हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे.

15 अगस्त 1947 के दिन भारत का डोमिनियम ऑफ पाकिस्तान और डोमिनियम ऑफ इंडिया में बंटवारा कर दिया गया था. आरोपियों ने 'महात्मा गांधी' को इसका जिम्मेदार माना. कुछ सदस्यों ने पाया कि महात्मा गांधी माइनॉरिटी कम्युनिटी के हितों को बचाने के लिए हरसंभव तरीके से प्रयास कर रहे हैं. इस बात का हिंदू महासभा के सदस्यों में काफी रोष था. इसे लेकर विनायक दामोदर सावरकर ने महात्मा गांधी की हत्या का प्लान बनाया और इस कार्य के लिए नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को तैयार किया. अभियोजन पक्ष ने माना कि इस पूरे कार्य के दौरान सावरकर ने खुद को पर्दे के पीछे रखा.

  • 10-01-1948: दिगंबर बडगे, नाथूराम गोडसे से मिलकर उन्हें दो गन कॉटन स्लैब (two gun cotton slabs) के साथ पांच हैंड ग्रेनेड देने का वादा करते हैं.
  • 12-1-1948: मदनलाल पाहवा, डॉ. डीसी जैन (प्रोफेसर, रूइया कॉलेज, मुंबई) से मिलते हैं. इस लंबी बातचीत के दौरान मदनलाल कहते हैं कि उनके संस्था के सदस्य महात्मा गांधी को मारने का प्लान बना रहे है और उसे प्रार्थना सभा में बम फेंकने का काम सौंपा गया है.
  • 13-01-1948: नाथूराम गोडसे ने खुद के लिए (2000 रूपये) और अपने भाई नाम पर (3000 रूपये) का लाइफ इंश्योरेंस खरीदा.
  • 14-01-1948: दिगंबर बडगे और शंकर किस्तैया गन और हैंड ग्रेनेड देने पूणा से मुंबई पहुंचे. दोनों को पहले सावरकर सदन ले जाया गया, उसके बाद दोनों हिंदू महासभा के ऑफिस पहुंचे. दिगंबर बडगे को इसके लिए गोडसे की ओर से आने-जाने के भाड़े के लिए 50 रूपये दिए गए.
  • 15-01-1948: नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे अलग-अलग नाम से दिल्ली के लिए टिकट बुक करवाते हैं. इसी दिन, दीक्षित महराज नामक व्यक्ति के घर पर तय हुआ गन को दिल्ली विष्णु करकरे और मदनलाल पाहवा लेकर जाएंगे.
  • गोपाल गोडसे, इस समय किरकी ऑर्डिनेंस डीपो में सहायक स्टोर कीपर का काम करते थे, ने इस दौरान दो बार छुट्टियों की मांग की थी, पहली बार छुट्टी खारिज हुई, दूसरी बार उनकी छुट्टी मांन ली गई जो कि 17 से 23 जनवरी, 1948 तक की थी.
  • 17-01-1948: नाथूराम गोडसे दिल्ली के लिए निकले, उससे पहले उन्होंने तात्याराव सावरकर से आखिरी बार मिलने की बात कही. इसके लिए वे सावरकर सदन गए, जहां पहले मंजिल पर उन्हें तात्याराव से मिलाया गया. दोनों को तात्याराव से यशस्वी होउं (सफल होकर लौटना) का आर्शीवाद मिला. बता दें कि नाथूराम गोडसे, विनायक दामोदर सावरकर को तात्याराव सावरकर ही कहते थे.
  • 19-01-1948: दिल्ली के शरीफ होटल में गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु करकरे से शरीफ होटल में मिले. दिगंबर बडगे भी शंकर किस्तैया के साथ बॉम्बे से 19 जनवरी की शाम दिल्ली आ पहुंचे थे. सभी अगले दिन तक साथ में रहे.
  • 20-01-1948: मदनलाल पाहवा ने प्रार्थना सभा से कुछ दूरी बम फोड़ा था, मदनलाल को मौजूद लोगों ने घेर लिया था, जिससे वे भागने में असफल हो गए. वहीं, मौका देख दिगंबर बडगे और शंकर किस्तैया को लेकर हिंदू महासभा के आफिस आ गए. नाथूराम व गोपाल गोडसे और नारायण आप्टे भी हिंदू महासभा के ऑफिस पहुंचे. गोपाल गोडसे को छोड़कर सभी शाम में बॉम्बे के लिए ट्रेन में चढ़ गए
  • 26-01-1948: नाथूराम गोडसेदीक्षित महाराज से मिले, उनसे गन का जुगाड़ करने को कहा, लेकिन दीक्षित महाराज ने शाम को जवाब देते हुए कहा कि वे ऐसा करने में असमर्थ है.
  • 28-01-1948: नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे, दत्ताराव परचुरे की मदद से गन पाने में सफल रहे और उसी शाम वे दोनों दिल्ली के लिए निकल गए. 29 और 30 जनवरी को, घटना से पहले, नई दिल्ली के रिटारिंग रूम में बिताया.
  • 30 जनवरी 1948: सायं पांच बजे नाथूराम गोडसे ने प्रार्थना सभा में आते हुए महात्मा गांधी पर तीनों गोलियां चलाई. नाथूराम गोडसे को वहीं पकड़ लिया गया.

आरोपियों के खिलाफ क्या आरोप तय किए गए?

पुलिस ने अपना आरोप-पत्र (चार्जशीट) 27-5-1948 को दायर किया, जिसमें आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 120बी (अपराधिक साजिश) सेक्शन 109 (अपराध के लिए उकसाना) 114 और 115 (दुष्प्रेरण), के साथ आईपीसी की धारा 302 (हत्या का अपराध) और एक्सप्लोसिव सब्सटेंस की धारा 4,5,6 और इंडियन आर्म्स एक्ट की धारा 19 के तहत दर्ज की गई थी.

आरोपियों में किसे-क्या सजा मिली?

मामले में पुलिस ने 12 लोगों को आरोपी बनाया, नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, विनायक सावरकर, दत्तात्रेय परचुरे, गंगाधर दंडवते, सूर्यदेव शर्मा और गंगाधर जाधव. 12 में से 2 लोग, नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा मिली. मदनलाल पाहवा, गोपाल गोडसे और विष्णु रामकृष्ण करकरे, दत्तात्रेय परचुरे को उम्रकैद की सजा मिली. वहीं, शंकर किस्तैया को पहले उम्रकैद की सजा मिली थी, बाद में उन्हें हाईकोर्ट से रिहा कर दिया गया था. इनमें से दिगंबर बड़गे सरकारी गवाह बन गए, उन्हें क्रॉउन की ओर क्षमा प्रदान की गई. विनायक सावरकर एक ऐसे आरोपी रहे, जिसे अदालत ने बरी किया दिया था. सबसे ज्यादा वकील भी सावरकर ने ही रखे थे. वहीं, तीन आरोपियों गंगाधर जाधव, सूर्यदेव शर्मा और गंगाधर एस. दंडवते को भगौड़ा घोषित करार दिया गया था.

कोर्ट प्रोसीडिंग की टाइमलाइन

  • चार्जशीट सबमिशन: 27-05-1948
  • अभियोजन पक्ष के गवाह व सबूत दर्ज किए गए: 24-06-1948 से 06-11-1948. अभियोजन पक्ष ने 149 गवाह के बयान 720 पन्नों में दर्ज किया. मामले में 404 डॉक्यूमेंट्री यानि वीडियो और 80 मेटेरियल सबूत के तौर पर  रखे.
  • आरोपियों के बयान 08-11-1948 से 22-11-48 के बीच दर्ज किए गए. उनके बयानों के 297 पन्नों के हुए. शंकर किस्तैया ने अपना लिखित बयान दिया, बाकियों ने अपना स्टेटमेंट दर्ज करवाया था.
  • अदालत कार्यवाही 1-12-1948 से 30-12-1948 तक चली.
  • अदालत ने 10 फऱवरी, 1949 के दिन अपना फैसला सुनाया.