जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के ट्रांसफर को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अहम निर्णय लिया है. कॉलेजियम ने दो बैठक करने के बाद जस्टिस वर्मा को वापस से इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश केन्द्र से की है. जस्टिस यशवंत वर्मा के अधिकारिक आवास से कैश मिलने के बाद यह फैसला लिया गया है. वहीं, जब पिछली बार उनके ट्रांसफर की बात उठी थी तो इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने कहा था कि हम कूड़ेदान नहीं है, जहां आप ट्रांसफर करने की इच्छा जता रहे हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की जनरल हाउस मीटिंग पूरी हो गई. आज जनरल हाउस की मीटिंग में हाईकोर्ट बार ने कई प्रस्ताव पास किए. मीटिंग के बाद बार एसोसिएशन ने जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे आरोपों की जांच आदमी की तरह कराए जाने की मांग की है. साथ ही बार एसोसिएशन ने जस्टिस यशवंत वर्मा के जज बनने के बाद से जितने भी ऑर्डर दिए हैं सभी के रिव्यू कराने की मांग की है. जस्टिस यशवंत वर्मा के इलाहाबाद हाईकोर्ट में आने पर बार एसोसिएशन इस फैसले का विरोध करेगी. बार एसोसिएशन ने घोषणा किया है कि वे लंच के बाद यानी दोपहर 2 बजे के बाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के वकील न्यायिक कामकाज नहीं करेंगे. हाईकोर्ट में जजों की निर्धारित संख्या को जल्द से जल्द पूर्ण किए जाने की मांग.
अधिकारिक आवास पर 15 करोड़ रूपये कैश मिलने के मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस इन्क्वायरी शुरू की है. सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत सिन्हा पर लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है. इस जांच कमेटी में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया, और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु सिवरमन शामिल हैं. यह कमेटी दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करेगी.
दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने जस्टिस वर्मा से लिखित में जबाव की मांग की. उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि 15 मार्च 2025 को, जब मैं होली की छुट्टियों के दौरान लखनऊ में था, मुझे दिल्ली के पुलिस आयुक्त श्री संजय अरोड़ा का फोन आया. उन्होंने मुझे 14 मार्च 2025 की रात 11:30 बजे एक स्टोर रुम में आग लगने की घटना के बारे में सूचित किया. इस घटना की गंभीरता को देखते हुए, मैंने अपने रजिस्ट्रार-कम-सचिव को घटना स्थल पर भेजा. रिपोर्ट के अनुसार, आग जिस कमरे में लगी, वह उपयोग में न आने वाली घरेलू वस्तुओं का भंडारण कक्ष था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यह कमरा सभी के लिए खुला था और लॉक नहीं किया गया था. जब रजिस्ट्रार ने कमरे का दौरा किया, तो उन्होंने देखा कि दीवारों पर दरारें थीं और आग के कारण दीवारें काली हो गई थीं.
दिल्ली हाई कोर्ट के गेस्ट हाउस में मुझसे मुलाकात के दौरान, आपने मुझे बताया था कि आप घटना के समय भोपाल में थे और आपको आग की सूचना बेटी से मिली. आपने सुरक्षा व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की, क्योंकि भंडारण कक्ष गार्ड रूम के पास था. हालांकि, पुलिस आयुक्त की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि आग की घटना के बाद सुबह 15 मार्च को कुछ मलबा और आधे जले हुए सामान को हटा दिया गया था. इस घटना की गंभीरता को देखते हुए, आपसे (जस्टिस वर्मा) से अनुरोध है कि 22 मार्च 2025 तक इस घटना को लेकर लिखित उत्तर प्रदान करें. यह घटना न केवल सुरक्षा के दृष्टिकोण से चिंताजनक है, बल्कि इसके पीछे संभावित साजिश की आशंका भी जताई गई है.
सीजेआई संजीव खन्ना के निर्देशानुसार दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने जस्टिस यशवंत वर्मा से उनका जबाव मांगा. निर्देशों के अनुसार, जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपना जबाव चीफ जस्टिस को सौंपा है. जस्टिस यशवंत वर्मा ने जबाव देते हुए लिखा कि, आगजनी की यह घटना उस समय हुई जब मैं और मेरी पत्नी मध्य प्रदेश में यात्रा कर रहे थे. केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर थीं. आग लगने की सूचना सबसे पहले उनकी बेटी और निजी सचिव ने दी, जैसा कि रिकॉर्ड में दर्ज है. आगजनी की जगह एक स्टोर रूम था, जिसका उपयोग अक्सर फर्नीचर, बॉटल्स, और अन्य सामान को डंप करने लिए किया जाता था. यह कमरा मुख्य निवास से अलग है और इसे सभी के लिए खोला गया है. मैं स्पष्ट करता है कि यह कमरा उनके घर का हिस्सा नहीं है, जैसा कि कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है.
जस्टिस यशवंत वर्मा ने मीडिया पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने बिना जांच-पड़ताल के ही उन्हें दोषी ठहराने का काम किया. उनका कहना है कि अगर मीडिया ने सही जानकारी इकट्ठा की होती, तो उन्हें इस तरह की अपमानजनक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता. जब आग लगी, तो सभी कर्मचारियों और परिवार के सदस्यों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का निर्देश दिया गया था. अग्निशामक दल ने आग बुझाने का कार्य किया और जब उन्होंने घटना स्थल पर लौटकर देखा, तो वहां कोई नकद या मुद्रा नहीं मिली. जस्टिस यशवंत वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी इस स्टोर रूम में कोई नकद रखा. यह आरोप पूरी तरह से निराधार है. उनका कहना है कि यह विचार कि कोई व्यक्ति खुले और सार्वजनिक स्टोर रूम में नकद रखेगा, बिल्कुल असंभव है. आगजनी के बाद, परिवार ने स्थिति को समझने की कोशिश की. जब वे दिल्ली लौटे, तब उन्हें इस घटना की पूरी जानकारी दी गई. जब उन्होंने वीडियो और तस्वीरें देखीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि यह एक साजिश हो सकती है. जस्टिस यशवंत वर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि उनके सभी नकद निकासी बैंकिंग चैनलों के माध्यम से की जाती हैं और ये सभी लेनदेन पूरी तरह से रिकॉर्डेड हैं और किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं है.