इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में हैं. चर्चा की वजह विश्व हिंदू परिषद के सम्मेलन में शामिल होकर उनका भाषण देना रहा. इस भाषण के चलते उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया, जो कि शीत सत्र के समापन के साथ ही रद्द हो गया. उसके बाद इस बयान के बाद 17 दिसंबर के दिन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें तलब कर 'बयान' पर जबाव मांगा. कॉलेजियम ने शेखर यादव को न्यायिक गरिमा का भी ख्याल रखने के निर्देश दिए थे.
कॉलेजियम के तलब करने के ठीक एक महीने बाद जस्टिस शेखर यादव ने अपना जबाव सौंपा है. जस्टिस यादव ने दावा किया है कि उनके बयानों से उनके पद की गरिमा व आदर्श आचार संहिता का किसी तरह से उल्लंघन नहीं किया गया है. जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि उनके बयानों को कुछ स्वार्थी तत्वों ने उनके भाषणों को अपने एजेंडे के अनुसार तोड़-मरोड़कर पेश किया है. उन्होंने विश्व हिंदू सम्मेलन में जो भी वक्तव्य दिया, वह संविधान में निहित मूल्यों के अनुसार था, ना कि किसी समुदाय विशेष के प्रति घृणा फैलाना था.
अपने जबाव में उन्होंने न्यायिक सेवा में शामिल वरिष्ठ जनों से भी आग्रह किया कि अगर वे सेवा के चलते सार्वजनिक मंच से अपने ऊपर लगे आरोपों को जबाव नहीं दे सकते है, तो न्यायिक सेवा के वरिष्ठ जनों द्वारा उनका बचाव किया जाना चाहिए था.
बता दें कि विहिप अधिवेशन में जस्टिस शेखर यादव ने इस कार्यक्रम में कहा था कि कठमुल्ले देश के लिए घातक हैं. उन्होंने कहा था कि 'कठमुल्ला शब्द गलत है लेकिन यह कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वे देश के लिए बुरे हैं. वो जनता को भड़काने वाले लोग है. देश आगे न बढ़े, इस प्रकार की सोचने वाले लोग हैं. उनसे सावधान रहने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बयान को अखबारों के माध्यम से संज्ञान में लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से उनके भाषण के बारे में तलब किया था.