आज जस्टिस जॉयमाल्या बागची अधिकारिक रुप से सुप्रीम कोर्ट जज बन चुके हैं. जस्टिस जॉयमाल्या बागची को सीजेआई संजीव खन्ना ने इस पद की शपथ दिलाई है. जस्टिस बागची का शपथ समारोह फुल कोर्ट सेरेमनी में किया गया. फुल कोर्ट का अर्थ सुप्रीम कोर्ट के सभी जज इस कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहें. जस्टिस बागची के शपथ लेने के बाद, सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 34 के मुकाबले 33 हो जाएंगी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बागची का कार्यकाल छह साल से अधिक का होगा. इस दौरान वह भारत के CJI रूप में भी काम करेंगे. जस्टिस जॉयमाल्या बागची का कार्यकाल साल 2031 में जस्टिस केवी विश्वनाथन का सीजेआई के रूप में रिटायर होने के बाद आएगा.
सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने छह मार्च के दिन सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में जस्टिस जॉयमाल्या बागची के नाम की सिफारिश की थी. कॉलेजियम के इस अनुरोध पर केंद्र सरकार ने 10 मार्च के दिन जस्टिस बागची के नाम को मंजूरी दी थी. जस्टिस जॉयमाल्या के करियर पर गौर करें तो, उन्हें 27 जून 2011 को कलकत्ता हाई कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. उसके बाद, चार जनवरी 2021 को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया गया और आठ नवंबर 2021 को, दोबारा से, कलकत्ता हाई कोर्ट में वापस भेज दिया गया और तब से वह वहीं कार्यरत हैं. जस्टिस जॉयमाल्या बागची के पास 13 वर्षों से अधिक समय तक हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है. अपने लंबे कार्यकाल के दौरान, जस्टिस बागची ने कानून के विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया.
12 मार्च के दिन, कलकत्ता हाई कोर्ट में जस्टिस जॉयमाल्या बागची (Justice Joymalya Bagchi) का विदाई सम्मान समारोह मनाया गया. इस दौरान जस्टिस बागची ने अपने पुराने दिनों की यादों को साझा किया. अपने संबोधन के शुरूआत में जस्टिस ने कहा कि मेरे परिवार की जड़े नवद्वीप से जुड़े है, जो भगवान चैतन्य का जन्म स्थान है. यह प्रसिद्ध जस्टिस बिजन कुमार मुखर्जी का भी बर्थ प्लेस है. बता दें कि जस्टिस बिजन कुमार मुखर्जी भारत के चौथे सीजेआई रहें.
जस्टिस ने आगे कहा, "जब मेरा जन्म 1966 में हुआ, तब तक मेरा परिवार कलकत्ता में आ चुका था. उनके पिता वकालती पेशे में थे और मां स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही थी. जब 1983 में बार काउंसिल ने पांच साल की एलएलबी कोर्स की शुरूआत की थी, उसके दो साल बाद यानि की 1985 में ऐसे में इस पाठ्यक्रम में दाखिला लिया. उनके घर की लाइब्रेरी जिसमें उनके पिता, दादा और उनके ग्रेट फादर की पढ़ी थी, उनके पिता इन सभी किताबों को बेच देते, अगj वह वकालत के पेशे में नहीं आए होते."
अपने संबोधन के दौरान जस्टिस ने बताया कि 1991 में वे बार काउंसिल में रजिस्टर कराया और मिस्टर सेन के साथ सिविल प्रैक्टिस करने लगे. लेकिन मुवक्किल क्रमिनल मामलों के ज्यादा आ रहे थे, जिसके चलते उन्हें बाद में शेखर बसु और प्रदीप घोष के चेम्बर को ज्वाइन किया.
जस्टिस ने आगे कहा, जजजशिप में आने समय उनके समय उनके मन में कई ख्याल आ रहे थे, वह 'जज' के रूप में महान दायित्व का निर्वहन करने जा रहे हैं. और उन्हें अब इसमें अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करना है.
अपने विदाई समारोह में जस्टिस ने अपने सीनियर जज, साथी वकीलों का धन्यवाद ज्ञापन किया.