पुलिस और वकील, दोनों अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ होते हैं. पुलिस स्टेशन के अंदर दरोगा जी तो अपने चैंबर में बैठे वकील साहब भी उतने ही पावरफुल माने जाते हैं. दोनों की मुलाकात अक्सर सड़कों पर हो जाती है, सड़कों पर कभी कानून की कठोरता दिखाकर वकील साहब निकल जाते हैं तो कभी पुलिस वाले चलान थमा देते हैं.
ये वाद भी कुछ ऐसा ही है. इसमें वकील साहब अक्सर ही ट्रैफिक से उलझ पड़ते थे. आजिज होकर पूना पुलिस ने FIR दर्ज कर ली. 'वकील साहब' के खिलाफ फरवरी, 2024 में शिकायत दर्ज की गई.
वकील साहब ने FIR रद्द करने की मांग उठाई. FIR रद्द करने का मामला गुजरात हाईकोर्ट तक पहुंचा, अब तो गुजरात हाईकोर्ट ने भी 'वकील' को मुकदमे की तैयारी करने के लिए कह दिया है. आइये मामले को विस्तार से बताते हैं...
सूरत के वकील और एक्टिविस्ट हैं, मेहुल बोगरा. वे का कथित तौर पर यातायात पुलिस कर्मियों के साथ कई बार उलझ पड़े. बात बढ़ी तो, सूरत के वकीलों ने ट्रैफिक पुलिस के खिलाफ व बोगरा के समर्थन में रैली भी निकाली. फरवरी, 2024 में पुना पुलिस ने बोगरा के खिलाफ एक FIR दर्ज की, जिसमें उन पर गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने, दंगा करने, पुलिस की ड्यूटी में बाधा डालने और अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक शब्द बोलने का आरोप लगाते हुए सुसंगत धाराओं में मामले को दर्ज किया गया.
अब एडवोकेट बोगरा ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. FIR रद्द करने की मांग की. याचिका जस्टिस निरजर एस. देसाई ने सुना. उन्होंने कहा, ऐसी घटनाओं में आपकी संलिप्तता लगातार देखी जा कही है.
जस्टिस ने कहा,
"हर बार ऐसी घटनाएँ सिर्फ आपके साथ ही क्यों होती हैं? क्या आप लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं या प्रचार चाहते हैं? आप पुलिस विभाग से जुड़े मामलों के अलावा कोई और मामला क्यों नहीं उठाते?"
जस्टिस ने आगे कहा,
"यदि पुलिस को आपराधिक अभियोजन (मुकदमों) से छूट नहीं है, तो अधिवक्ताओं को भी यह छूट नहीं है"
जस्टिस ने अपनी बात पूरी की,
"सिर्फ इसलिए कि आप वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, क्या इसका अर्थ यह है कि आपको कुछ भी करने की छूट मिल गई है? मुकदमे का सामना करें..."
जस्टिस ने अपना निर्णय स्पष्ट कर याचिका को खारिज कर दिया.