क्या जज सोशल मीडिया से प्रभावित होते हैं? क्या अदालतों का फैसला पब्लिक ओपिनियन के आधार पर तय होता है? क्या जज बहुसंख्यक लोगों के हितों का ख्याल रखकर फैसला सुनाते हैं? न्यायपालिक से जुड़े इन पहलुओं पर डिबेट पहली बार नहीं है या ऐसा भी नहीं है कि इन सवालों को पब्लिक डोमेन में पहली बार लाया गया है. ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका ने समय-समय पर इन आक्षेपों पर अपनी संयमित प्रतिक्रिया ना दी हो. इस बार भी जब ये सप्ताह अतुल सुभाष सुसाइड मामले, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग लाने जैसे चर्चित मुद्दे से घिरा रहा है, तो सीजेआई संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khana) का ये वक्तव्य आपके मन में घुमड़ते सवालों का बहुत हद तक जबाव दे जाएगा. मौका था सोसायटी ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स और जॉर्जटाउन लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित चर्चा का, जिसमें सीजेआई संजीव खन्ना ने भाग लिया. इस चर्चा में सीजेआई संजीव खन्ना ने लोक अदालत, विधिक सहायता और जजों के चयन और जिम्मेवारी जैसे विषयों पर अपनी बात कहीं.
CJI संजीव खन्ना अपनी बात शुरू करते हुए कहते हैं, जज निर्वाचित नहीं होते हैं यानि चुनाव के सहारे नहीं चुने जाते हैं, इसलिए फैसले देने से पहले उन्हें सोशल मीडिया पर लोगों की राय नहीं लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की जवाबदेही न्यायिक प्रशिक्षण और बार की भूमिका के माध्यम से बनाए रखी जाती है. हमारे यहां ओपन कोर्ट है, लोग तर्क के सहारे अपना पक्ष रखते हैं और हम जजमेंट के माध्यम से और इन प्रक्रियाओं से अदालती कार्यवाही में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है. CJI ने कहा कि न्यायपालिका की अखंडता को बनाए रखने में न्यायाधीशों की भूमिका महत्वपूर्ण है. उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायिक जवाबदेही न्यायाधीशों पर निर्भर करती है जो उस समय न्यायालय में होते हैं.
CJI संजीव खन्ना ने कहा,
"मैं हमेशा अमेरीकी कोर्ट के जैसे फुल कोर्ट बेंच में बैठने पर जोड़ देता था... लेकिन हम दो से तीन जजों की बेंच में बैठते हैं, जो विभिन्न बैकग्राउंड से आए जजों से मिलकर बना होता है. इनके पास अपना अनुभव, परीक्षण करने का अलग तरीका होता है, जो कि अदालत को सही फैसला सुनाने में महत्वपूर्ण होता है."
सीजेआई ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका की विविधता ने उसे बेहतर और मजबूत बनाया है और वादों की सुनवाई के दौरान सच्चाई को खोजने में आसान राह बनाई है.
चर्चा के दौरान सीजेआई ने न्याय तक आम नागरिकों की पहुंच सुगम बनाने को लेकर भारत में बने तंत्र का जिक्र किया. इस वक्तव्य के दौरान सीजेआई ने कहा कि पिछले सात सालों में लोक अदालत के माध्यम से भारतीय न्यायपालिका ने 130 बिलियन मुकदमों की सुलझाया है. लोक अदालतों से राहत पाने के बाद लोगों के चेहरे के मुस्कान देखते ही बनती है. उन्होंने कहा कि हमारा देश महिला अधिकारों को मजबूत बनाने में हमेशा अग्रसर रहा है. वहीं, भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) और आर्टिकल 21 (गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार) भी लोगों के मौलिक अधिकारों को मजबूत बनाता है.