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जस्टिस यशवंत वर्मा का इस्तीफा देने से इंकार, CJI Sanjiv Khanna ने राष्ट्रपति-पीएम को लिखी चिट्ठी, दी ये जानकारी

चीफ संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा से मिले जबाव भेजकर इन-हाउस कमिटी की स्थिति से अवगत कराया.

CJI Sanjiv Khanna, Justice Yashwant Varma

Written by Satyam Kumar |Published : May 9, 2025 4:03 AM IST

भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग यानि इम्पीचमेंट की सिफारिश की है. यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई है, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ घर से मिले नकदी के मामले में आरोपों की पुष्टि की गई है. सीजेआई ने यह कदम तब उठाया जब जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने की सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया.

CJI ने लिखी चिट्ठी

सीजेआई ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है, जिसमें तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट और न्यायाधीश वर्मा का उत्तर संलग्न किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक बयान जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश ने समिति की रिपोर्ट के साथ जस्टिस वर्मा का उत्तर भी भेजा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ घर से मिले कैश मामले में आरोपों की पुष्टि की है. इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधवालिया और कर्नाटका हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे. समिति ने रिपोर्ट 3 मई को सौंपा था. इसके बाद, सूत्रों के अनुसार, सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा को रिपोर्ट में के मद्देनजर इस्तीफा देने के लिए प्रेरित किया, जबकि जस्टिस वर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में आरोपों को बार-बार नकारा है.

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क्या है मामला?

यह मामला तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को रात 11:35 बजे न्यायाधीश वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई थी. इस मामले में दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली अग्निशामक सेवा के प्रमुख के बयान भी लिए गए. इस विवाद के बाद कई कदम उठाए गए, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय द्वारा प्रारंभिक जांच और जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस लेना शामिल था, जिसके बाद उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया.

महाभियोग लगाने तक पहुंचा मामला

2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एक इन-हाउस प्रक्रिया निर्धारित की थी. इस प्रक्रिया के पहले चरण में शिकायत में आरोपों की प्रामाणिकता का निर्धारण किया जाता है. यदि आरोपों में गंभीरता पाई जाती है, तो दूसरे चरण में गहन जांच की जाती है. दूसरे चरण में, यदि मुख्य न्यायाधीश इस बात से सहमत होते हैं कि गहन जांच की आवश्यकता है, तो एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है. यह समिति हाई कोर्ट के दो मुख्य न्यायाधीशों और एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से मिलकर बनती है. जांच के बाद, समिति अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को प्रस्तुत करती है. यदि समिति यह निष्कर्ष निकालती है कि आरोपों में कोई सच्चाई है, तो मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह देते हैं. यदि न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश की सलाह को नहीं मानते हैं, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को समिति के निष्कर्षों के बारे में सूचित करते हैं, जिससे इम्पीचमेंट की प्रक्रिया शुरू होती है. यह प्रक्रिया न्यायपालिका की स्वायत्तता और न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है.

(खबर एजेंसी इनपुट से है)