नई दिल्ली, सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्य बेंच आज केन्द्र सरकार द्वारा चुनावी बांड की नई अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. याचिका में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में चुनावी बॉन्ड की अनुमति देने को विधिविरूद्ध बताया गया है.
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के साथ इस बेंच में जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस जेबी परदीवाला शामिल रहेंगे. के साथ करेगी.केन्द्र सरकार ने इस अधिसूचना के जरिए राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानसभाओं के लिए होने वाले चुनाव के दौरान चुनावी बॉन्ड की बिक्री की अवधि 15 दिनों तक बढ़ाई गई है.
गौरतलब है कि विगत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अनूप चौधरी ने चुनावी बांड को लेकर केन्द्र अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका को शीघ्र सुनवाई के लिए मेंशन किया था. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष मेंशन करने पर उन्होंने कहा कि "हम इसे सूचीबद्ध करेंगे.
केन्द्र द्वारा जारी की गयी अधिसूचना के जरिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के आम चुनावों के वर्ष में इस योजना को 15 दिन की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ाया गया है. अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बांड की बिक्री 9 नवंबर से 15 नवंबर तक करने की अनुमति दी गई है.
अगले एक माह में गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है. ये चुनावी बाण्ड इन्ही चुनावों को मध्यनजर रखते हुए जारी करने की अनुमति दी गई है.
एडवोकेट अनूप चौधरी ने अधिसूचना को पूर्णतया अवैध बताते हुए इसे रोकने की मांग की है. उन्होंने मामले को मेंशन करते हुए कहा था कि "वे योजना के खिलाफ अधिसूचना जारी कर रहे हैं. यह अधिसूचना पूरी तरह से अवैध है"
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ ने एडवोकेट द्वारा मेंशन करने का जवाब देते हुए इसे उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने की बात कही थी. सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ही आज इस मामले पर सुनवाई करेगी.
केंद्र सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने के दावे के साथ 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया था. मूलरूप से सरकार ने इसके लिए the RBI Act, the Income Tax Act और the Representation of People Act सहित कुल 5 एक्ट में संशोधन करते हुए Finance Act 2017 लेकर आयी थी. इस अधिनियम को सरकार ने धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था, जिसका अर्थ था कि इसे राज्यसभा की सहमति की आवश्यकता नहीं थी.
इलेक्टोरल बॉन्ड इसलिए लाए गए थे, ताकि भारत के सियासी दलों के पैसे जुटाने के संदेहास्पद तौर-तरीकों में सुधार लाया जा सके. लेकिन जब से ये लाया गया है तब से लेकर लगातार ये विवादों में रहा है.एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एंड कॉमन कॉज ने सर्वप्रथम इस योजना को सुप्रीम कोर्ट में ये कहते हुए चुनौती दी की इसके जरिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया है और लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा हैं.याचिका में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता समाप्त करने की बात कही गयी