नई दिल्ली, गुजरात में एक विचाराधिन कैदी ने जमानत पर रिहा होने के लिए खुद की शादी का ही फर्जी कार्ड छपवाकर कोर्ट में पेश कर दिया. लेकिन पुलिस जांच में खुलासा होने के बाद अदालत ने ना केवल आरोपी की जमानत याचिका को खारिज किया है, बल्कि अदालत के समक्ष गलत तथ्य पेश करने के लिए 1 लाख का जुर्माना भी लगाया गया हैं.
मामला गुजरात हाईकोर्ट का हैं, जहां पर सात मामलों में आरोपी इमरान उर्फ छोटू काडवा इसियाक अहमद सिद्दीकी ने स्वयं की शादी का कार्ड पेश कर अदालत से 30 दिन के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा करने का अनुरोध किया. हाईकोर्ट के जस्टिस समीर जे दवे की एकलपीठ ने आरोपी की याचिका पर सरकारी अधिवक्ता से मामले में रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए.
जांच के बाद लिंबायत पुलिस थाने के थानाधिकारी ने हाईकोर्ट में जांच रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि आरोपी ने जिस महिला के साथ स्वयं का विवाह होना बताया उनके पड़ोसी से हुई पूछताछ व बयानों के अनुसार ऐसी कोई शादी प्रस्तावित नहीं थी. शादी के कार्ड में जिस घर का पता दिया गया था वह कार्ड में दर्शायी गयी महिला के पिता के नाम पर था और वो घर पिछले दो साल से बंद होने के साथ ही उसमें पिछले लंबे समय से बिजली तक नहीं हैं.
पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपी ने जिस महिला का नाम दिया उसने अपने ही माता-पिता को घर से बाहर कर दिया था. जबकि उसके पिता का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं. जांच में ये भी सामने आया कि पिछले छह माह से उक्त महिला की शादी को लेकर दक्षिण गुजरात के अलग-अलग थानों से भी पुलिस उस पते पूछताछ के लिए आ रही थी. लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसी कोई शादी नहीं थी.
पुलिस ने अपनी जांच में दावा किया कि ऐसी कोई शादी नहीं होनी चाहिए थी और जिस महिला के साथ आवेदक स्पष्ट रूप से शादी करने वाला था, उसने पिछले मौकों पर भी अदालत को इसी तरह की झूठी सूचना दी थी. इसके साथ ही पुलिस ने महिला पर आरोपी के साथ ही कई अन्य लोगों के साथ इसी तरह की गतिविधियों में लिप्त होने की बात कही गयी.
जस्टिस दवे की एकलपीठ ने पुलिस की रिपोर्ट को गंभीर मानते हुए इसे न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना. हाईकोर्ट ने दशरथमल पटेल केस का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून का दुरुपयोग है और इस मामले में ना केवल याचिका को खारिज किया जाना उचित होगा, बल्कि उदाहरण के साथ खारिज किया जाना जरूरी है.
हाईकोर्ट ने मामले को सूरत पुलिस अधीक्षक को भेजते हुए दोषी व्यक्तियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने के आदेश दिए. साथ ही आरोपी याचिकाकर्ता की ओर पेश की गई जमानत याचिका को खारिज करते हुए 1 लाख का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने जुर्माने की राशि को एक माह के भीतर संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने के आदेश दिए हैं.