सुप्रीम कोर्ट ने गाज़ियाबाद जेल में बंद एक शख्श को ज़मानत का आदेश मिलने के बावजूद रिहा न किए जाने पर जेल सुपरिटेंडेंट को पेशी के लिए समन जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने जेल महानिदेशक को भी 25 जून को होने वाली सुनवाई में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने को कहा है. इस केस में पेश वकील का दावा था कि जिन धाराओं के तहत उसके मुवक्किल के खिलाफ केस दर्ज किया गया, जमानत के आदेश में उनका पूरी तरह से उल्लेख न होने के तकनीकी कारण के चलते उसे जमानत नहीं मिल पाई है.
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसके पीछे गड़बड़ी की आशंका जाहिर करते हुए इसे न्याय का मखौल करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस केस में याचिकाकर्ता का यह दावा सही पाया गया तो कोर्ट जेल अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करेगा. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भी चेताया है कि अगर यह आरोप सही नहीं पाए गए तो उसे भी गंभीर परिणाम झेलने होंगे. उसकी जमानत रद्द करने का आदेश भी कोर्ट दे सकता है.
आसिफ नाम के इस शख्श पर अवैध धर्मांतरण के आरोप में 2024 में मुकदमा दर्ज किया गयाथा. 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में उसे जमानत दी. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि जमानत की शर्तें ट्रायल कोर्ट तय करेगा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक एडिशनल सेशन जज ने करीब एक महीने पहले जेल सुपरिटेंडेंट को रिलीज आर्डर जारी किया. याचिकाकर्ता का दावा था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उसके खिलाफ अवैध धर्मांतरण के आरोप में दर्ज धारा का पूरी तरह से उल्लेख नहीं था, इसलिए उसे जमानत नहीं दी गई. इसलिए अब उसने पुराने आदेश में संशोधन की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि हमने आदेश में अपराध की उन धाराओं को जिक्र किया है, जिनको लेकर याचिकाकर्ता के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. यह न्याय का मजाक ही है कि सिर्फ सब सेक्शन का जिक्र नही होने की वजह से कोई शख्श इतने समय तक जेल में रहा, जिसे बहुत पहले जमानत पर बाहर आ जाना चाहिए था। इस केस में गहन जांच की ज़रूरत है. इसलिए हम जेल सुपरिटेंडेंट को व्यक्तिगत रूप से और जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए पेश होने का निर्देश दे रहे है.
(खबर एजेंसी इनपुट से है)