बैंक से लोन लेने वाले व्यक्ति को क्या कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 1986 के तहत राहत दी जाएगी? क्या लोन वाले व्यक्ति को कंज्यूमर यानि कि उपभोक्ता माना जाएगा, अगर हां, तो कब? आइये जानते हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उधार लेने वाले शख्स द्वारा बैंक के खिलाफ दायर की गई शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मान्य नहीं है क्योंकि यह एक 'बिजनेस-टू-बिजनेस लेनदेन' है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि ऋण (Loan) का उपयोग लाभ कमाने के लिए किया गया है, तो उधारकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Protection Act, 1989) की धारा 2 (1) (d) (ii) के तहत 'उपभोक्ता' की परिभाषा में नहीं आएगा. कंज्यूमर एक्ट की धारा 2 (1) (d) (ii) के तहत बिजनेस या लाभ कमाने के उद्देश्य के लिए लिया गया लोन उधारकर्ता को कंज्यूमर मानने पर रोक लगाता है.
2014 में, सेंट्रल बैंक ने एड ब्यूरो को राजिनीकांत की फिल्म 'कोचादियान' (Kochadaiiyaan) के पोस्ट-प्रोडक्शन के लिए 10 करोड़ रुपये का लोन दिया था. यह लोन नहीं चुकाने की वजह से फेल हो गया, जिसके कारण DRT के समक्ष मुकदमा चलाया गया. अंतत एक बार का निपटान ₹3.56 करोड़ के लिए किया गया. एड ब्यूरो ने दावा किया कि वन टाइम सेटलमेंट के अनुसार राशि का भुगतान करने के बावजूद, बैंक ने उसे CIBIL पर डिफॉल्टर के रूप में चिह्नित कर दिया, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान और व्यापार में हानि हुई. इस दावे के साथ एड कंपनी ने सेंट्रल बैंक के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत दर्ज की. कंज्यूमर कोर्ट ने बैंक को शिकायतकर्ता, एड ब्यूरो एडवर्टाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड को 75 लाख रुपये का मुआवजा और मुकदमे का खर्च देने का निर्देश दिया था. कंज्यूमर कोर्ट के फैसले के खिलाफ सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI) ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCRC) के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने बैंक की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि लोन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना था. पीठ ने एड ब्यूरो के उस तर्क को खारिज कर दिया कि ऋण का उपयोग व्यक्तिगत उपयोग के लिए किया गया था, और इसलिए वह उपभोक्ता था.
अदालत ने कहा,
"हम इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं कि लोन का उपयोग केवल ब्रांड निर्माण के लिए किया गया था. किसी भी ब्रांड निर्माण का प्रमुख उद्देश्य अधिक ग्राहकों को आकर्षित करना और व्यापार के लिए लाभ उत्पन्न करना है."
अदालत ने यह भी कहा कि कंपनी का यह कहना कि वह केवल ब्रांड निर्माण के उद्देश्य से फिल्म के पोस्ट-प्रोडक्शन में लगी थी, लेन-देन की मूल प्रकृति को नहीं बदलता है.
श्रीकांत जी. मंतरी बनाम पंजाब नेशनल बैंक के एक फैसले का उल्लेख किया, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक स्टॉक ब्रोकर जो अपने व्यवसाय के लिए ओवरड्राफ्ट सुविधा का उपयोग करता है, वह अधिनियम के अर्थ में 'उपभोक्ता' नहीं हो सकता, इसी तरह, राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम हर्षोलिया मोटर्स के मामले में भी कहा गया था कि लेनदेन का प्रमुख उद्देश्य या इरादा यह देखना आवश्यक है कि क्या यह व्यावसायिक प्रकृति का था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से स्पष्ट किया है कि व्यवसायिक लाभ कमाने के उद्देश्य से लोन लेने वाले शख्स को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कंज्यूमर नहीं माना जा सकता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने केवल उपभोक्ता शिकायत की वैधता के मुद्दे पर विचार किया है, न कि विवाद के गुणों पर.