झारखंड हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने सोमवार को नियुक्तियों में जाति प्रमाणपत्र को लेकर अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी नियुक्ति प्रक्रिया में विज्ञापन की तिथि के बाद जारी जाति प्रमाणपत्र मान्य नहीं होगा. ऐसे मामलों में अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा और उन्हें अनारक्षित श्रेणी में माना जाएगा.
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने कुल 44 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया. इस मामले में 21 अगस्त को सुनवाई पूरी हो चुकी थी और फैसला सुरक्षित रखा गया था. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के राम कुमार गिजरोया मामले में दिया गया आदेश सभी मामलों पर स्वतः लागू नहीं होगा. राज्य सरकार, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) को जाति प्रमाणपत्र का फॉर्मेट और मान्यता की शर्तें तय करने का अधिकार है.
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि जेपीएससी और जेएसएससी नियुक्ति विज्ञापन की तिथि के बाद जारी जाति प्रमाणपत्र स्वीकार नहीं कर रहे हैं, जिससे आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा. उनका कहना था कि आयोग विज्ञापन तिथि तक ही जाति प्रमाणपत्र को सीमित नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट के राम कुमार गिजरोया केस का हवाला देते हुए दलील दी गई कि जाति प्रमाणपत्र जन्म के आधार पर होता है, न कि समय के आधार पर. इसलिए विज्ञापन की तिथि के बाद जारी प्रमाणपत्र भी मान्य होना चाहिए. वहीं, आयोग की तरफ से यह दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट का एक अन्य आदेश स्पष्ट करता है कि नियुक्ति विज्ञापन की तिथि तक का ही जाति प्रमाणपत्र मान्य होगा. यदि उस तिथि तक प्रमाणपत्र नहीं है, तो अभ्यर्थी को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। अदालत ने आयोग के तर्क को स्वीकार किया और कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह व्यवस्था आवश्यक है.