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वक्फ संशोधन विधेयक को असंवैधानिक घोषित करने की मांग, अब AAP MLA अमानतुल्लाह खान भी SC पहुंचे

आप विधायक अमानतुल्लाह खान (AAP MLA Amanatullah Khan) ने कहा कि बिल, मुसलमानों के मौलिक अधिकार और उनकी स्वायत्तता का हनन करने वाला है. याचिका में कानून में किये संशोधन को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है.

आप विधायक अमानतुल्लाह खान, सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : April 5, 2025 1:22 PM IST

वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 के विरोध में तीसरी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है. कांग्रेस, एआईएआईएम और अब आम आदमी पार्टी (AAP) की तरफ से की गई है. आप विधायक अमानतुल्लाह खान (AAP MLA Amanatullah Khan) ने कहा कि बिल, मुसलमानों के मौलिक अधिकार और उनकी स्वायत्तता का हनन करने वाला है. याचिका में कानून में किये संशोधन को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है. साथ ही कहा है कि कोर्ट इस कानून के अमल पर रोक का आदेश दे. इससे पहले  और AIMIM के असद्दुदीन ओवैसी भी SC में याचिका दायर कर चुके है.

आर्टिकल 32 के तहत याचिका

आप विधायक अमानतुल्लाह खान ने संविधान के अनुच्छेद 32 (Article 32) के तहत याचिका दायर की है. आर्टिकल 32 के तहत-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत, कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट जा सकता हैआप विधायक ने दावा किया है कि यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 और 2013 के प्रावधानों को संशोधित करता है, जो मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-A में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. आप नेता के अनुसार, यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को कम करता है और अल्पसंख्यकों के अपने धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों के प्रबंधन के अधिकार को कमजोर करता है.

आर्टिकल 25 और 26 के उल्लंघन का दावा

आप विधायक ने कहा कि वक्फ संशोधित विधेयक की धारा (3r) वक्फ की स्थापना को केवल उन मुसलमानों तक सीमित करती है जिन्होंने कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का प्रैक्टिस किया हो और जिनके पास संपत्ति हो. यह ऐतिहासिक रूप से प्रचलित वक्फ और अनौपचारिक समर्पण को अयोग्य घोषित करता है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है. याचिका में इस बात के लिए सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया.

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आप विधायक ने दावा किया कि सदार सैयदना ताहिर सैफुद्दीन साहेब बनाम बॉम्बे राज्य (AIR 1962 SC 853) के फैसले में यह स्पष्ट कहा गया है कि धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार अनुच्छेद 26 के अंतर्गत प्रदत्त स्वतंत्रता का हिस्सा है. कमिश्नर, हिंदू धार्मिक अनुदान बनाम श्री लक्ष्मींद्र तीर्थ स्वामीअर ऑफ़ शिरूर मठ (AIR 1954 SC 282) के मामले में न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि धार्मिक संप्रदायों को धर्म के मामलों में स्वायत्तता प्राप्त है, जिसमें संपत्तियों का प्रशासन भी शामिल है. इसलिए विवादित प्रावधान मुस्लिम कानून के तहत मान्यता प्राप्त वक्फ समर्पण की आवश्यक धार्मिक प्रथा को कानूनी रूप से बदलकर इस स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं.

आर्टिकल 14 का उल्लंघन

आप विधायक ने दावा कि वक्फ संशोधन अधिनियम की धारा 9 और 14 के तहत वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने से एक ऐसा वर्गीकरण बनता है जिसमें कोई समझदार अंतर नहीं है और न ही धार्मिक संपत्ति प्रशासन के उद्देश्य से इसका कोई तार्किक संबंध है. यह वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह मनमाना व्यवहार करता है. याचिका में कहा गया कि पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनवर अली सरकार (AIR 1952 SC 75) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि ऐसा वर्गीकरण जो मनमाने व्यवहार की ओर ले जाता है, अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है. साथ ही बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग प्रावधान (धारा 13) इस्लाम के अन्य संप्रदायों (जैसे देवबंदी या बरेलवी) के समान व्यवहार को दर्शाता नहीं है. यह धार्मिक समुदाय के भीतर असमान व्यवहार को दर्शाता है, जो कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है.

अनुच्छेद 15 के उल्लंघन का दावा

आप विधायक ने दावा किया कि वक्फ संशोधन अधिनियम की धारा 3C किसी भी सरकारी संपत्ति को वक्फ घोषित करने पर रोक लगाती है। यह कानूनी प्रतिबंध, ऐतिहासिक प्रमाण या उपयोगकर्ता की परवाह किए बिना, मुस्लिम समुदाय को असमान रूप से प्रभावित करता है. धारा 3C, धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाने वाले अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करती है क्योंकि यह एक विशेष समुदाय के धार्मिक प्रथाओं को चुनिंदा रूप से प्रभावित करती है, जिससे असमानता पैदा होती है. आप विधायक ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वास्तविक समानता पर जोर दिया था, लेकिन यह संशोधन उस कसौटी पर खरा नहीं उतरता. यह संशोधन एक समुदाय के धार्मिक रीति-रिवाजों को चुनिंदा रूप से अक्षम करता है.

गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार

वत्फ संशोधन अधिनियम की धारा 4 (कलेक्टर) और धारा 83 (वक्फ ट्रिब्यूनल की रोक लगाने की शक्ति) में न्यायाधिकरण की शक्तियों का कार्यपालिका अधिकारियों को हस्तांतरण और वक्फ ट्रिब्यूनल की स्थगन शक्तियों को घटाने से अनुच्छेद 21 - जीवन का अधिकार और उचित प्रक्रिया के उल्लंघन की संभावना होती है. यह निष्पक्ष प्रक्रिया से वंचित करने के समान है. आप विधायक ने मेनका गांधी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया. मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978 AIR 597) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए.

आर्टिकल 300 ए का भी उल्लंघन

अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन तब होता है जब किसी व्यक्ति की संपत्ति का अधिकार कानून के अधिकार के बिना छीना जाता है. आप विधायक ने कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम की धारा 36(10) के तहत 6 महीने बाद अपंजीकृत वक्फ (Unregistered Waqf) के लिए कानूनी उपचार से इनकार करने का मतलब है कि संपत्ति के अधिकारों का बिना मुआवजे के वैधानिक रूप से समाप्त होना. आप विधायक ने आगे दावा किया कि यह अनुच्छेद 300-क का उल्लंघन है. के.टी. प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य (2011) 9 SCC 1 के मामले में माननीय न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि संपत्ति के अधिकारों का अधिग्रहण या समाप्ति निष्पक्ष, न्यायसंगत और जनहित में होनी चाहिए.

आर्टिकल 29 और आर्टिकल 30

आप विधायक ने कहा कि आर्टिकल 29 किसी भी समुदाय को अपनी विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार देती है. चूंकि वक्फ मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अभिन्न अंग है, इसलिए यह इस संरक्षण के अंतर्गत आता है. वहीं, आर्टिकल 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देती है. वक्फ बोर्डों और धार्मिक दान-पुण्यों की स्वायत्तता को कम करके और सत्ता को धर्मनिरपेक्ष कार्यपालिका के हाथों में केंद्रित करके, विधेयक इस गारंटी का उल्लंघन करता है. टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक अधिकार के लिए संस्थागत स्वायत्तता के महत्व को स्वीकार किया था.

आप विधायक ने दावा किया कि वक्फ द्वारा उपयोगकर्ता का सांविधिक बहिष्कार, निर्णयों पर प्रतिबंध और शासन निकायों में धार्मिक संरचना का कमजोर होना मुस्लिमों की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को संरक्षित करने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है.

फेडरलिज्म को कमजोर करना

आप नेता ने दावा किया कि केन्द्र सरकार ने इस विधेयक में राज्य वक्फ बोर्डों के साथ पर्याप्त परामर्श किए बिना ही नियम बनाने और डिजिटलीकरण को अनिवार्य किया है, जिससे राज्य सरकारों की भूमिका कमजोर होती है और संघीय ढाँचे को नुकसान पहुंचता है. यह सातवीं अनुसूची के अंतर्गत विधायी शक्तियों के संघीय वितरण का उल्लंघन करता है. यह एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994 SCC (3) 1) में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.