अनन्या श्रीवास्तव
भारत में कई दशकों से 'समान नागरिक संहिता' (Uniform Civil Code) पर डिबेट हो रही है और पिछले कुछ समय से यह मुद्दा काफी चर्चा में है। आज के समय में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर क्या बातें चल रही है, इस बारे में जानने से पहले समझते हैं कि 'समान नागरिक संहिता' होती क्या है, भारतीय संविधान में इसका उल्लेख किस तरह किया गया है और इस कॉन्सेप्ट का देश में लागू होना किस तरह से प्रभावकारी साबित हो सकता है...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'समान नागरिक संहिता' यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड एक देश में एक ही कानून हो, इस विचारधारा पर आधारित एक कॉन्सेप्ट है। इसके तहत देश के सभी नागरिक एक ही कानून का पालन करेंगे, फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वो किस धर्म, समुदाय, लिंग, जाति या जनजाति के हैं।
बता दें कि 'यूसीसी' के तहत विवाह, तलाक, अडॉप्शन और संपत्ति का अर्जन और संचालन, सबके लिए एक ही कानून बनाया जाएगा और उसे फॉलो किया जाएगा।
'यूनिफॉर्म सिविल कोड' का उल्लेख भारतीय संविधान में किया गया है। संविधान का भाग IV, अनुच्छेद 44 कहता है कि राज्य पूरे भारत में सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
यदि यह संहिता लागू कर दी जाती है, तो इससे शादी (marriage), तलाक (divorce), गोद लेने (adoption), बच्चों की विरासत की अभिरक्षा (custody of children inheritance), संपत्ति के उत्तराधिकार (succession to property) आदि से जुड़े सभी धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून (personal laws) भी प्रभावित होंगे।
यूसीसी 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत' (Directive Principles of State Policy) के तहत आता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 37 यह स्पष्ट करता है कि डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे लेकिन ये देश की शासन-विधि के लिए आधारभूत हैं।
बता दें कि भारत में सिर्फ एक राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू होती है और यह राज्य गोवा (Goa) है। आजादी के पहले से ही वहां यह संहिता लागू कर दी गई थी और अभी भी यहां के कानून में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
गोवा के बाद अब, उत्तराखंड में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code in Uttarakhand) लाया जा रहा है।
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की UCC का ड्राफ्ट बनाने वाली कमिटी ने एक साल से ज्यादा इस पर काम किया है, दो लाख से ज्यादा लोगों से इस विषय पर बात हुई है और सभी बुद्धिजीवी और धार्मिक संगठनो से भी कमिटी ने बातचीत की है। ड्राफ्ट पूरा होने वाला है और इसमें विधि आयोग, कानून मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी अपने सुझाव देने के लिए शामिल किया गया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक बार फिर चर्चा में है और वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान है। प्रधानमंत्री मोदी के जिस बयान की यहां बात हो रही है, वो उन्होंने हाल ही में मध्य प्रदेश के भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, "आप मुझे बताएं, एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून कैसे हो सकता है? क्या वह घर चल पाएगा? तो फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना होगा कि संविधान में भी सभी के लिए समान अधिकार की बात कही गई है.''
भारत विविधता का देश है जहां के लिए अनेकता में एकता की बात कही जाती है। इस देश में तमाम धर्म, जातियों और समुदायों के लोग रहते हैं और सभी के अपने पर्सनल लॉ हैं। ऐसे में समान नागरिक संहिता के लागू होने से इन सभी के कानूनों पर क्या असर होगा, इसको लेकर लोगों के मन में चिंता है और विवाद के पीछे का कारण यही है।
सभी धर्मों की सोच और राय को महत्व देने के लिए विधि आयोग (Law Commission) ने सभी धार्मिक समुदायों से इस मुद्दे पर उनके मत मांगे हैं और इसके लिए एक महीने का समय दिया है।
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग के पास अब तक आठ लाख से ज्यादा सुझाव आ चुके हैं और वो ज्यादा से ज्यादा लोगों को 'समान नागरिक संहिता' पर अपने मन की बात को रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड एक सामाजिक विषय होने के साथ-साथ अब एक राजनैतिक मुद्दा भी बन गया है।