नई दिल्ली: जब भी किसी आम नागरिक को कोई परेशानी होती हो तो वो पुलिस के पास जाते हैं अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं. जिसे First Information Report (FIR) कहा जाता है, उसके बाद पुलिस उस मामले की जांच करती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जांच, पूरी होने के बाद पुलिस की आगे की प्रक्रिया क्या होती है? उस रिपोर्ट का पुलिस क्या करती है. चलिए जानते हैं.
जांच पूरी होने के बाद पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा (Section) 173 के तहत प्रावधान किए जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है .
धारा 173 को कई उपधाराओं में बांटा गया है जिसमें जांच के बाद पुलिस को क्या करना चाहिए उसके बारे में कई प्रावधान किए गए हैं.
1. इस अध्याय के अनुसार हर जांच (Investigation) बिना देरी के पूरा किया जाना चाहिए.
(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी (Officer in Charge) पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्रारूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें उल्लेखित होंगी:
(क) पक्षकारों के नाम
(ख) इत्तिला का स्वरूप (Nature of the Information)
(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम ;
(घ) क्या किसी पर शक है और अगर है तो किस पर ;
(ङ) क्या अभियुक्त (Accused) गिरफ्तार कर लिया गया है ;
(च) क्या वह अपने बंधपत्र (Bond) पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं (Sureties) सहित है या प्रतिभुओं रहित;
(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा (Custody) में भेजा जा चुका है.
(ज) जहां जांच भारतीय दंड संहिता ( Indian Penal Code), (1860 का 45) की धारा 376, 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 3761 या धारा 3766] के अधीन किसी अपराध के संबंध में है, वहां क्या स्त्री की चिकित्सा परीक्षा की रिपोर्ट संलग्न की गई है.
(ii) अधिकारी, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से, उसके द्वारा की गई कार्रवाई की सूचना उस व्यक्ति को भी देगा, यदि कोई हो, जिसके द्वारा पहले अपराध किए जाने से संबंधित जानकारी दी गई थी.
(3) जहां धारा 158 के अधीन कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहां ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निर्देश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिए, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निर्देश दे सकता है कि वह आगे और जांच करे.
4) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र से छुटकारा (Release) के लिए या अन्यथा ऐसा जैसा सही लगेगा वैसा आदेश दे सकता है.
(5) जब ऐसी रिपोर्ट का संबंध ऐसे मामले होगा जिस पर धारा 170 लागू होती है, तब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट के साथ-साथ निम्नलिखित भी भेजेगा:
(क) जांच के दौरान पहले से ही मजिस्ट्रेट को भेजे गए दस्तावेजों के अलावा सभी दस्तावेज या उनके प्रासंगिक उद्धरण जिन पर अभियोजन पक्ष भरोसा करने का प्रस्ताव करता है;
(ख) उन सभी व्यक्तियों का धारा 161 के तहत दर्ज किए गए बयान जिन्हें अभियोजन पक्ष अपने गवाहों के रूप में जांच करने का प्रस्ताव कर सकता है.
(6) अगर पुलिस अधिकारी को यह लगता है कि दिए गए बयान के कुछ भाग केस से संबंधित नहीं है और उसका बाहर आना लोकहित के लिए सही नहीं है तो वह उस कथन को अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिए निवेदन करते हुए और ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों को बताते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेज सकता है.
(7) जहां मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी को ऐसा करना सुविधाजनक लगता है, वह आरोपी को उप-धारा (5) में निर्दिष्ट सभी या किसी भी दस्तावेज की प्रतियां प्रस्तुत कर सकता है.
(8) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहां वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को विहित प्रारूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहां तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं.