नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में बैंक और वित्तीय संस्थान ऋण न चुकाने वाले लोगों की संपत्ति को अदालत के हस्तक्षेप के बिना बेच या नीलाम कर सकते हैं. आपको बता दे कि यदि कोई बैंक से लोन लेता है और उसे चुकता नहीं कर पाता है तो सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act), 2002 के तहत बैंक और वित्तीय संस्थान लोन लेने वाले की संपत्ति को बेच सकते हैं या फिर नीलाम भी कर सकते हैं. जानते हैं कैसे इस अधिनियम के तहत कार्यवाही आगे बढ़ती है.
सर्फेसी अधिनियम (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act) एक ऐसा कानून है जिसके तहत बैंक या वित्तीय संस्थान अपने गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPA ) की वसूली कर सकते हैं और उन संपत्तियों को बेच सकते हैं वो भी अदालत के हस्तक्षेप के बिना.
इस अधिनियम के अंतर्गत, सेंट्रल रजिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटाइजेशन एसेट रिकन्स्ट्रक्शन एंड सिक्योरिटी इंटरेस्ट ऑफ इंडिया (CERSAI) का भी गठन किया गया है. CERSAI सिक्योरिटी इंटरेस्ट की पूरी तरह से ऑनलाइन सेंट्रल रजिस्ट्री है.
CERSAI को ऐसे मामलों में धोखाधड़ी की जांच के लिए बनाया गया है, जहां एक ही संपत्ति को संपार्श्विक (collateral) के रूप में इस्तेमाल करके अलग-अलग बैंकों से कई ऋण लिए गए हो.
सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act), 2002 में हुए संशोधन में कहा गया है कि "यह विभिन्न वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण को विनियमित करने तथा सिक्योरिटी इंटरेस्ट का प्रवर्तन करने और इसका केंद्रीय डेटाबेस तैयार करने का एक अधिनियम है, जो विशेषतः संपत्ति के अधिकार और उससे जुड़े या उसके संबद्ध मामलों के लिए बनाए गए हैं."
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार, सरफेसी अधिनियम के प्रावधान MSME अधिनियम पर लागू होंगे. यह फैसला कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड बनाम गिरनार कॉरगेटर्स प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित एक मामले में दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वित्तीय संपत्ति प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित अधिनियम, 2002 के प्रावधान सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 ('MSMED Act') पर लागू होंगे.
इस मामले में, कोटक महिंद्रा बैंक ने SARFAESI अधिनियम के तहत रिकवरी की कार्यवाही शुरू की, लेकिन प्रभारी अधिकारी को पता चला कि MSMED अधिनियम के तहत किसी अन्य लेनदार को रिकवरी प्रमाणपत्र पहले ही जारी किया जा चुका है.
इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ही माना कि विवाद के मामलों में, SARFAESI अधिनियम ही लागू होगा.
पिछले वर्ष अक्टूबर में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) किसी कंपनी और उसके निदेशकों के खिलाफ बैंक द्वारा दर्ज शिकायत की जांच कर सकता है, जिसमें धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया .
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, "इस न्यायालय ने फिर से कई मामलों में स्पष्ट रूप से माना कि जब बैंक द्वारा ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र का उपयोग किया जाता है, जब तक कि ऐसी कार्रवाई को धोखाधड़ी घोषित नहीं किया जाता है, वे दो कार्यवाही नहीं कर सकते- पहली, लोन वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष और दूसरा आपराधिक कानून को गति में स्थापित करने की. यदि खाते को धोखाधड़ी घोषित किया जाता है और खाताधारकों को विलफुल डिफॉल्टर्स घोषित किया जाता है तो यह मास्टर सर्कुलर के अनुसार, कार्यवाही शुरू करने के लिए खुला हो जाएगा."
कोर्ट ने यहां तक कहा कि सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) के तहत वसूली प्रमाण पत्र कार्यवाही शुरू करने के बाद भी कर सकता है.