नई दिल्ली: जब भी किसी वस्तु को एक बार इस्तेमाल कर दोबारा बेचा जाता है तो उसका मूल्य बदल जाता है. बिक्री कम दामों में की जाती है. मूल्य कम होने को ही मूल्यह्रास (Depreciation) कहा जाता है. किसी भी कंपनी के पास मूर्त (एसेट्स का भौतिक रूप) और अमूर्त (यह एसेट केवल कागज पर मौजूद होता है) दोनों तरह की परिसंपत्तियां (Asset) होती हैं. परिसंपत्तियां के मूल्य भी समय के साथ कम होते हैं जिसे मूल्यह्रास होना कहा जाता है. कंपनियों के संदर्भ में मूल्यह्रास कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत किया जाता है. जानते हैं क्या है Company Law के तहत मूल्यह्रास.
मूल्यह्रास शब्द का प्रयोग किसी भी परिसंपत्ति के इस्तेमाल के कारण उसके दामों में आए कमी के लिए किया जाता है. मूल्य में कमी किसी भी कमी के कारण हो सकता है, जैसे बाजार की जरूरतों में आए बदलाव, तकनीकी प्रगति, मांग और आपूर्ति अनुपात में वृद्धि या कमी, किसी विशेष परिसंपत्ति के उपयोग में वृद्धि या कमी, और उद्योग -विशिष्ट परिवर्तन आदि.
इस तरह, मूल्यह्रास की गणना परिसंपत्तियों के वास्तविक मूल्य को निर्धारित करने के लिए की जाती है और यह अन्य लेखांकन (अकाउंटिंग) आवश्यकताओं को भी पूरा करता है.
कंपनियां संचयी (Cumulative) मूल्यह्रास की गणना करने के लिए कई प्रक्रियाओं को अपनाती हैं, जिसके बारे में कंपनी अधिनियम, 2013 के साथ साथ आयकर अधिनियम, 1961 में भी प्रावधान किया गया यह
यह अधिनियम कंपनियों के स्वामित्व वाली परिसंपत्तियों के मूल्यह्रास को निर्धारित करने के लिए एक नियामक ढांचा प्रदान करती है.
कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची II के अनुसार परिसंपत्ति के विभिन्न वर्गों के उपयोगी जीवन की गणना को संदर्भित करता है. उपयोगी जीवन निर्धारण या उपयोगी जीवन के निर्धारक के रूप में इकाइयों की संख्या का उपयोग करके मूल्यह्रास की गणना को “उत्पादन की इकाई (Unit of Production Depreciation - UOP) विधि” के रूप में जाना जाता है.
यह सरल लेखा विधि (Straight Line Method), अवलेखित मूल्य, जिसे उत्पादन की इकाई पद्धति के रूप में भी जाना जाता है, का उपयोग करके मूल्यह्रास के निर्धारण को निर्धारित करता है. इसलिए, कंपनियां मूल्यह्रास की गणना के लिए किसी भी तरीके को अपना सकती है.
इस अधिनियम की धारा 123 में लाभांश (Dividends) की घोषणा और विभाजन के बारे में बताया गया है. इस धारा के अनुसार लाभांश का भुगतान उस वित्तीय वर्ष के लिए कंपनी के मुनाफे (धारा 198 के अनुसार) की गणना के बाद ही किया जा सकता है और मूल्यह्रास कटौती के बाद ही किया जा सकता है.
धारा 123 में कहा गया है कि मूल्यह्रास की गणना अधिनियम की अनुसूची II के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी. इस प्रकार, धारा 123(1)(a) एक अंतिम लाभ विवरण पर पहुंचने के लिए मूल्यह्रास घटाने के अनिवार्य प्रावधान के बारे में बताती है जो कि धारा 198 द्वारा आवश्यक है.
इस धारा में किसी दिए गए वित्तीय वर्ष में कंपनी के लाभ की गणना के लिए प्रावधान किया गया है. इसके प्रावधानों के अनुसार, लाभ की गणना के लिए कई कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जैसे शेयरों की बिक्री से लाभ, पूंजीगत लाभ, अचल संपत्तियों और परिसंपत्तियों की बिक्री से अधिनियम आदि.
अधिनियम की धारा 198(4)(k) में कहा गया है कि मूल्यह्रास की गणना अधिनियम की धारा 123 के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी.
इस अधिनियम के तहत मूल्यह्रास का दावा करना जरूरी नहीं है. मूल्यह्रास का दावा दो उद्देश्यों के लिए किया जाता है पहला लेखांकन और दूसरा कराधान के लिए.
जब भी मूल्यह्रास का दावा करने का उद्देश्य लेखांकन का होता है, तो मूल्यह्रास की गणना आमतौर पर कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत की जाती है. हालांकि, अगर कोई कंपनी चाहे तो आयकर अधिनियम, 1961 के तहत भी दावा करने का विकल्प चुन सकती है.
आयकर अधिनियम, 1961 के तहत, एक कंपनी परिसंपत्ति पर मूल्यह्रास का दावा कर सकती है जिसे “व्यवसाय और पेशे से आय” की श्रेणी में रखा जा सकता है.
आयकर अधिनियम, १९६१ के तहत अवलेखित मूल्य (written down value) विधि का उपयोग करके “परिसंपत्तियों के ब्लॉक” की अवधारणा के अनुसार मूल्यह्रास की गणना निर्धारित करता है.