नई दिल्ली: हमारे देश की अदालतों में कई ऐसे मामले हैं जिनकी सुनवाई सालों साल चलती रहती है. लंबी और लंबित जांच की वजह से आरोपी व्यक्ति को काफी समय तक हिरासत में रहना पड़ता है जिससे आरोपी और उसके परिवार वालों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. आपको आज एक ऐसे जमानत के बारे में बताएंगे जो की आरोपी व्यक्ति संबंधित कोर्ट से मांग सकता है. आईए जानते हैं इस तरह की जमानत को क्या कहते हैं और यह कब दी जाती है.
आपको बता दे कि जमानत या बेल का अर्थ है किसी तय समय -सीमा के लिए दोषी /आरोपी व्यक्ति को जेल से राहत देना. हमेशा जमानत व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ दी जाती है जिसकी अवहेलना करने पर व्यक्ति की जमानत रद्द हो सकती है. ये शर्तें अपराध के आरोप पर निर्भर करती है
आपने जमानत के प्रकार के बारे में सुना होगा जैसे- अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail), अंतरिम जमानत (Interim Bail), साधारण जमानत, और थाने से जमानत, लेकिन क्या पता है कि डिफ़ॉल्ट ज़मानत क्या है और यह कब दिया जाता है.
जब पुलिस किसी व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के बाद उसे गिरफ्तार करती है तो उसके बाद पुलिस की यह जिम्मेदारी होती है कि वो कानून के अनुसार बताए गए समय सीमा के अंदर चार्जशीट फाईल करें लेकिन अगर वो ऐसा करने में विफल होते हैं तो क्या होता है और गिरफ्तार व्यक्ति क्या कर सकता है इसके बारे में CrPC में प्रावधान किया गया है.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 167(2) के अंतर्गत दी जाने वाली जमानत को 'बाध्यकारी जमानत' या 'वैधानिक जमानत' या 'डिफ़ॉल्ट जमानत' कहा जाता है. इसके तहत अपराध की प्रकृति के अनुसार यदि पुलिस यथास्थिति 90 दिन या 60 दिन की निर्धारित समय सीमा के भीतर न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र/चार्जशीट दाखिल करने में असफल रहती है तो आरोपी द्वारा जमानत साधिकार मांगी जा सकती है.
मृत्युदंड, आजीवन कारावास और कम से कम 10 साल के कारावास से दंडित अपराधों में पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन का समय और अन्य अपराधों में 60 दिन का समय दिया जाता है. यह समय सीमा केवल भारतीय दंड संहिता में बताए गए अपराधों पर लागू होती है .
ऐसे भी अधिनियम हैं जिनके अंतर्गत पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए ज़्यादा समय भी दिया गया है -जैसे कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (The Narcotic Drugs and Psychotropic Substances ), 1985 के तहत पुलिस को 180 दिन का समय दिया गया है जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है.
CrPC की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार, न केवल एक वैधानिक अधिकार, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का हिस्सा भी है.
कमर गनी उस्मानी बनाम गुजरात राज्य
इस मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत की अर्जी दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि एक अभियुक्त डिफ़ॉल्ट ज़मानत के लाभ का दावा नहीं कर सकता है, जब उसने जांच के लिए दिए गए समय के पहले विस्तार को चुनौती नहीं दी थी और दूसरा विस्तार उसकी उपस्थिति में दिया गया था और फिर विस्तार की अवधि के भीतर चार्जशीट दायर की गई थी.
तेलंगाना हाईकोर्ट ने चार्जशीट पेश होने में देरी के आधार पर पूर्व कांग्रेसी नेता और सांसद वाई एस विवेकानंद रेड्डी की हत्या के मामले आरोपी एरा गंगी रेड्डी को डिफ़ॉल्ट जमानत दी थी. चार्जशीट दायर करने के बाद सीबीआई ने तेलंगाना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए एरा गंगी रेड्डी को मिली डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द करने का अनुरोध किया था.
तेलंगाना हाईकोर्ट ने सीबीआई की याचिका को खारिज करते हुए आरोपी एरा गंगी रेड्डी को दी हुई Default Bail को रद्द करने से इंकार कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत को योग्यता के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे जांच एजेंसियों की कार्यवाही को और देरी से करने पर मजबूर कर देगा.
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ चुनौती देते हुए CBI ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत को रद्द करने का अनुरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एम आर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ इस मामले पर पर सुनवाई करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जब आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत दी गई थी, तो वह केवल इस आधार पर दी गई थी कि पुलिस द्वारा 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की गई थी, ना की मामले की मैरिट्स (Merits) को ध्यान में रखकर दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस बात पर कोई रोक नहीं है कि एक बार किसी व्यक्ति को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया गया है, तो उसे मेरिट और जांच में सहयोग नहीं करने जैसे आधारों पर उसकी जमानत को रद्द नहीं किया जा सकता है.
जमानत रद्द करने की इस व्यवस्था को और भी स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहाकि केवल चार्जशीट दायर करने पर ही डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द नहीं किया जाएगा, अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के खिलाफ मजबूत मामला पेश करने के पश्चात ही मैरिट्स के आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है.