नई दिल्ली: किशोरों द्वारा अपराध की दर अप्रत्याशित रूप से बढ़ती चली जा रही है, जो एक चिंता का कारण है. हम अक्सर किशोरों द्वारा किए गए सड़क परिवहन अपराध से सम्बंधित खबरें सुनते हैं, जैसे हिट एंड रन मामला, ट्रैफिक तोड़ना आदि. यदपि भारत में वाहन चलाने के लिए कानूनी उम्र 18 वर्ष है, लेकिन कानून का अनुपालन बहुत कम होता है जिसके कारण नाबालिग भी सड़कों पर वाहन दौड़ाते हुए दिख जाते हैं और परिणाम निर्दोष पैदल चलने वालों को भुगतना पड़ता है.
किशोरों द्वारा किये जाने वाले ऐसे अपराध माता-पिता की लापरवाही, अत्यधिक लाड़-प्यार और किशोरों की उद्दंडता का परिचय देती है. उदाहरण के लिए, हाल ही में एक नाबालिग द्वारा दिल्ली में हिट एंड रन का मामला हुआ था जिसमें एक व्यक्ति की मर्सिडीज से कुचले जाने के बाद मृत्यु हो गई. इस तरह के अपराधों को नियंत्रित करने और किशोर अपराधियों के लिए दण्ड निर्धारित करने हेतु मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199A को बनाया गया है.
मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act), एक अधिनियम है जो सड़क परिवहन वाहनों से संबधित सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है. यह अधिनियम चालकों/परिचालकों के लाइसेंस, परमिट के माध्यम से मोटर वाहनों के नियंत्रण, मोटर वाहनों के पंजीकरण, यातायात विनियमन, राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधानों, देयता, बीमा, इनसे जूड़े अपराधों और दंड आदि के संबंध में विस्तृत विधायी प्रावधान प्रदान करता है.
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199A किशोर द्वारा सड़क परिवहन वाहनों से संबधित अपराध और निर्धारित दंड का उल्लेख करता है. मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199A के अनुसार यदि इस अधिनियम के तहत अपराध किशोर द्वारा किया जाता है, तो कुछ ऐसे प्रावधान किए गए है-
(1) इस अधिनियम के तहत यदि एक किशोर द्वारा अपराध किया गया है, ऐसे किशोर के अभिभावक या मोटर वाहन के मालिक को उल्लंघन का दोषी माना जाता है और मोटर वाहन का मालिक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी होगा. वह तदनुसार दंडित किया जाएगा-
इस उप-धारा में, अभिभावक या मालिक को किसी भी दंड के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा, यदि वह यह साबित करता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध को रोकने के लिए सभी उचित परिश्रम किया था.
स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजन के लिए, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि किशोर द्वारा मोटर यान का प्रयोग, यथास्थिोति, ऐसे किशोर का संरक्षक था या स्वामी की सहमति से किया गया था.
(2) उप-धारा (1) के तहत ऐसे अभिभावक या मालिक को तीन साल तक के कारावास और पच्चीस हजार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा.
(3) उप-धारा (1) और उप-धारा (2) के उपबंध ऐसे अभिभावक या मालिक पर लागू नहीं होंगे यदि अपराध करने वाले किशोर को धारा 8 के अधीन शिक्षार्थी का लाइसेंस या ड्राइविंग लाइसेंस दिया गया था, और वह एक ऐसा मोटर वाहन चला रहा था जिसे चलाने के लिए ऐसे किशोर को लाइसेंस दिया गया था.
(4) जहां इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किसी किशोर द्वारा किया गया है, वहां अपराध करने में प्रयुक्त मोटर वाहन का पंजीकरण 12 महीने की अवधि के लिए रद्द किया जाएगा.
(5) जहां इस अधिनियम के अधीन एक किशोर द्वारा अपराध किया गया है, धारा 4 या धारा 7 के बावजूद, ऐसा किशोर धारा 9 के अधीन ड्राइविंग लाइसेंस या धारा 8 के तहत शिक्षार्थी लाइसेंस प्राप्त करने का पात्र नहीं होगा जब तक कि ऐसे किशोर ने पच्चीस वर्ष की आयु पूरी न कर ली हो.
(6) जहां इस अधिनियम के तहत एक किशोर द्वारा अपराध किया गया है, वहां ऐसा किशोर इस अधिनियम में मुहैया किए गए जुर्माने से दंडनीय होंगे, जबकि एक कस्टोडियल रिमांड की सजा, किशोर न्याय अधिनियम, 2000 (2000 का 56) के प्रावधानों के तहत उपांतरित (modified) किया जा सकता है.