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सड़क दुर्घटना में दिव्यांग हुए व्यक्ति को 15 लाख का मुआवजा देने का आदेश, जानें किन कारणों से SC ने दिया ये फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को मुआवजा देने के निर्देश देते हुए कहा कि दुर्घटना से उत्पन्न हुई 100% विकलांगता व आजीवन होने वाली 'दर्द और पीड़ा' के कारणों को देखते हुए पीड़ित व्यक्ति को मांग से ज्यादा मुआवजा देने को कहा है.

Written by Satyam Kumar |Updated : November 25, 2024 12:23 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना में चोटिल हुए व्यक्ति को 15 लाख का मुआवजा देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को मुआवजा देने के निर्देश देते हुए कहा कि दुर्घटना से उत्पन्न हुई 100% विकलांगता व आजीवन होने वाली 'दर्द और पीड़ा' के कारणों को देखते हुए पीड़ित व्यक्ति को मांग से ज्यादा मुआवजा देने को कहा है. पीड़ित व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट से दस लाख रूपये की मांग की थी, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को कुल मुआवजा 1,02,29,241/- रुपया मिलेगा. बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने व्यक्ति की मुआवजा के राशि को 58,09,930 रूपये से बढ़ाकर 78,16,390 रूपये कर दिया था. पीड़ित ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

पीड़ित को 15 लाख मुआवजे का आदेश

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने इंश्योरेंस कंपनी से अपीलकर्ता -पीड़ित को 15 लाख मुआवजा देने के निर्देश दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को पहुंची क्षति आजीवन उसके साथ बनी रहेगी. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ्रैंक द्वारा व्यक्त जीवन में अपूरणीयता की गहन ( being irreparably wrong in life) भावना के साथ-साथ एडगर द्वारा व्यक्त की गई भेद्यता और निरर्थकता (Vulnerability and Futility) की भावनाओं पर चर्चा की गई है. यह इस बात पर जोर देता है कि ऐसी भावनाएँ किसी व्यक्ति के संपूर्ण प्राकृतिक जीवन में बनी रहेंगी, जो अस्तित्व संबंधी चिंताओं के साथ गहरे संघर्ष को उजागर करती हैं जो पूरे मानव अनुभव में गूंजती हैं.

काजल बनाम जगदीश चंद के मामले में, न्यायालय ने 100% विकलांगता से जीवन भर बिस्तर पर पड़े रहने तथा नौ महीने की मानसिक अवस्था वाले बच्चे की जैसी स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि, रूढ़िवादी रूप से भी, बच्चे के दर्द और पीड़ा (Pain and Suffering) के लिए मुआवजा राशि 15,00,000 रुपये से कम नहीं होना चाहिए.

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अदालत ने दावेदार-अपीलकर्ता को चोटों और आजीवन विकलांगता के कारण दर्द और पीड़ा के लिए 15,00,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. यह निर्णय चोटों की गंभीरता और डॉक्टर के बयान पर आधारित है, जो दावेदार के मुआवजे को बढ़ाने की मांग को सही बताता है.

क्या है मामला?

22 अगस्त 2008 के दिन अपीलकर्ता पीड़ित को एक लापरवाह लॉरी चालक से टक्कर के बाद 90% स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ा. पुलिस ने लॉरी के ड्राइवर के खिलाफ आईपीसी की धारा 279, 337 और 338 के तहत मामले को दर्ज किया.

पीड़ित व्यक्ति नौकरी के साथ एलआईसी एजेंट के रूप में भी काम करता था, जहां से वह क्रमश: 28,221 रूपये और एजेंट के रूप में 30 से 40 हजार रूपये कमाता था. मोटर वाहन ट्रिब्यूनल ने मामले को दो मुख्य सवाल पर केन्द्रित किया. पहला, लॉरी ड्राइवर की कितनी गलती थी, दूसरा कि पीड़ित को कितना मुआवजा देना है और किसके द्वारा.

मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) ने शुरू में 58,09,930/- रुपये का मुआवजा दिया, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बढ़ाकर 78,16,390/- रुपये कर दिया. इसके बाद अपीलकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जिसने भविष्य की संभावनाओं और दर्द और पीड़ा के लिए मुआवजे को संशोधित किया, जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने कुल 1,02,29,241/- रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया.