राइट टू प्राइवेट डिफेंस. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी रक्षा में हमलावर व्यक्ति पर, पलट कर किया गया हमला अपराध नहीं माना जाता है, यानि कि किसी व्यक्ति के शरीर या संपत्ति की रक्षा के लिए दिया गया अधिकार है. लेकिन राइट टू प्राइटवेट डिफेंस यानि निजी सुरक्षा का अधिकार के तहत किसी को नुकसान पहुंचाना कब अपराध नहीं माना जाएगा, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है.
जमीन विवाद के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी व्यक्ति की सजा को रद्द करने से मना किया है. मामले में एक व्यक्ति (मृतक) आरोपी की भूमि पर बाड़ लगाने का प्रयास कर रहा था, जिसका आरोपी और उसके पिता ने विरोध किया. विरोध बढ़ते हुए हाथापाई तक पहुंच गई और आरोपी ने अपने पिता के मिलकर बाड़ लगाने वाले पर व्यक्ति पर चाकू से हमला कर दिया, इस घटनाक्रम में उसकी जान चली गई. पुलिस ने शिकायत दर्ज करते हुए मामला की जांच शुरू की. चार्जशीट अदालत के सामने सौंपी. अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने बताया कि आरोपी और उसके पिता ने मिलकर मृतक को पकड़ा और आरोपी ने उस पर चाकू से वार किया, जिससे उसकी जान चली गई. निचली अदालत ने पिता को बरी करते हुए बेटे (आरोपी) को दोषी ठहराया. आरोपी फैसले की मांग को लेकर केरल हाई कोर्ट में पहुंचा. हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद आरोपी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. आरोपी ने अदालत के सामने दावा किया कि उसे राइट टू डिफेंस के तहत राहत दी जाए. आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा है....
सुप्रीम कोर्ट ने निजी रक्षा के सिद्धांतों को स्पष्ट करते हुए कहा कि निजी रक्षा का उद्देश्य केवल खतरे को टालना है, ना कि दंडात्मक या प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करना. अदालत ने यह भी कहा कि किसी की हत्या केवल तभी उचित ठहराई जा सकता है जब आरोपी को मौत या गंभीर चोट की उचित आशंका (apprehension) हो. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खतरा वास्तविक, उपस्थित या स्पष्ट हो.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने भारतीय दंड संहिता के तहत निजी रक्षा के प्रावधानों का अध्ययन किया। न्यायालय ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि apprehension उचित था या नहीं, तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करना होगा। अदालत ने यह भी कहा कि आत्मरक्षा के अधिकार को संकीर्ण रूप से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य है।
अदालत ने स्पष्ट कहा कि मामले के तथ्यों से यह नहीं पता चलता कि आरोपी को किसी भी प्रकार का तत्काल खतरा था. आरोपी की संपत्ति को भी कोई खतरा नहीं था. इसके अलावा, आरोपी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उसके पिता द्वारा बाड़ लगाने का विरोध क्यों किया गया. अदालत ने यह भी देखा कि आरोपी ने दो बार चाकू से वार करने के बाद भी हमले को जारी रखा, जो कि यह दर्शाता है कि उपयोग की गई शक्ति आत्मरक्षा के लिए आवश्यक से अधिक थी. इस प्रकार, यह एक आक्रामक कार्रवाई थी, न कि आत्मरक्षा की.
अदालत ने कहा,
"निजी रक्षा के मामले में, कार्रवाई को केवल खतरे को टालने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए. प्रारंभिक चोट के बाद जारी हमला बल के असमान उपयोग को दर्शाता है, जो आत्मरक्षा के सिद्धांत के विपरीत है."
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को IPC की धारा 300 के अपवाद 2 का लाभ देने से इनकार कर दिया. इस अपवाद के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए कानून द्वारा दिए गए अधिकारों से अधिक शक्ति का प्रयोग करता है, तो उसे हत्या नहीं माना जाएगा. अदालत ने कहा कि आरोपी ने बिना किसी सावधानी और ध्यान के हत्या की. मृतक पर घातक हथियार से हमला करना और फिर उसे पीटना यह स्पष्ट करता है कि आरोपी ने अच्छे विश्वास में कार्य नहीं किया.
इसके अलावा, अदालत ने यह भी बताया कि पूर्व-निर्धारित की कमी भी आवश्यक है. आरोपी पहले से ही चाकू लेकर आया था, जो इस बात का संकेत है कि उसने पहले से योजना बनाई थी. अंत में, अदालत ने अपील पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन आरोपी को यह अवसर दिया कि वह राज्य सरकार के समक्ष सजा कम करने का अनुरोध कर सकता है. यदि मामला केरल राज्य की रिमिशन नीति के अंतर्गत आता है, तो संबंधित प्राधिकरण इस पर विचार करें.
केस टाइटल: रथीशकुमार @ बाबू बनाम केरल राज्य (RATHEESHKUMAR @ BABU vs STATE OF KERALA)