हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि CBI को राज्यों में तैनात केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देनेवाली अपील पर आया, जिसमें हाईकोर्ट ने दो केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ CBI जांच को रद्द कर दिया था. आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने CBI की FIR को खारिज करते हुए कहा कि CBI को जांच के लिए आंध्रप्रदेश सरकार से जांच की मंजूरी लेने की आवश्यकता थी.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस बिंदल की पीठ ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की अपील पर सुनवाई करते हुए आरोपियों की इस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया कि जांच एजेंसी को फिर से आंध्र प्रदेश सरकार से अनुमति लेने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि इस मामले में ये देखना होगा कि इस मामले में आरोप केंद्रीय कानून के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ है. ऐसे केस में CBI को वैसे भी मुकदमा दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी की ज़रूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य को समझने में विफलता दिखाई कि FIR के दर्ज करने की तारीख पर CBI को सरकार की सहमति प्राप्त थी.
यह मामला दो केन्द्रीय कर्मचारी, जो कुरूनूल और अनंतपुर जिले में कार्यरत थे, जो विभाजन से पहले और बाद में आंध्र प्रदेश का ही हिस्सा रहे. लेकिन दोनों कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत CBI ने जहां FIR दर्ज किया है, वह हैदराबाद, तेलंगाना राज्य पड़ा. हालांकि, हाईकोर्ट के अलग होने से पहले, सीबीआई ने अपनी जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट स्पेशल कोर्ट को सौंपा था, कोर्ट ने भी इस आरोप-पत्र पर संज्ञान लिया था.
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (Andhra Pradesh Re-Organisation Act, 2014) कानून के तहत आंध्र प्रदेश को 02 जून 2014 से दो राज्यों, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, में विभाजित किया गया. विभाजन के बाद, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय दिसंबर 2018 तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों राज्यों के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय बना रहा. उसके बाद दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग हाईकोर्ट बना. आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले, सरकार ने 14.05.1990 के दिन CBI को आंध्र प्रदेश में जांच करने की अनुमति दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 ( DSPE Act,1946) की धारा 6 के तहत जांच के लिए सामान्य सहमति दी थी. इसी को आधार बनाते हुए आऱोपियों ने हाईकोर्ट में दावा किया कि क्षेत्र बदलाव के चलते सीबीआई को दोबारा से सरकार की मंजूरी लेनी होगी.
आरोपियों की हाई कोर्ट में यह दलील थी कि 1990 में अविभाजित आंध्रप्रदेश की सरकार ने दिल्ली पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 (DSPE एक्ट )के तहत सीबीआई को अपने यहां जांच के लिए सहमति दी थी, लेकिन CBI को जांच के लिए दी गई यह सहमति आंध्र और तेलंगाना के विभाजन के बाद आंध्रप्रदेश पर खुद ब खुद लागू नहीं होती. इसके लिए आंध्रप्रदेश सरकार को नए सिरे से मंजूरी देने की ज़रूरत थी. आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपियों की इस दलील को स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ दर्ज CBI की FIR को खारिज कर दिया था.
अब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अपील स्वीकार करते हुए दोनों आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के फैसले को सही ठहराया है.