हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक जमानत याचिका (Bail Plea) पर सुनवाई करने के दौरान एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि आज ऐसे कई मामले सुनने को मिल रहे हैं जिसमें उच्च न्यायालय (High Court) जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट को एक निश्चित तारीख तक उससे संबंधित मुकदमे को पूरा (Court Procedings) करने के आदेश देती है. सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा पारित किए जा रहे इन निर्देशों से आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसा करने से वादियों में आशा जगती है, जो कि सही नहीं है और मुकदमों को तय समय पूरा करना भी अपनेआप में एक चुनौती है. आइये जानते हैं पूरा मामला...
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए किया, जो कथित जाली नोटों के मामले में ढ़ाई साल यानि कि दो साल छह महीने से जेल में है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश एवं अन्य मामले में दिए अपने ही फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट किसी तय समय-सीमा के अंदर मुकदमे के निपटारे का निर्देश देने को अनुचित बताया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
‘‘केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति हमारी संवैधानिक अदालतों में याचिका दायर करता है, उसे बिना बारी के सुनवाई का मौका नहीं दिया जा सकता. अदालतें शायद जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए मुकदमे के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करके आरोपी को कुछ संतुष्टि देना चाहती हैं. ऐसे आदेशों को लागू करना मुश्किल है। ऐसे आदेश वादियों में झूठी उम्मीद जगाते हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे निर्देशों से निचली अदालतों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कई निचली अदालतों में एक ही तरह के पुराने मामले लंबित हो सकते हैं. इस दौरान बेंच ने जमानत नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत को लागू करते हुए आरोपी-याचिकाकर्ता को जमानत दे दी है.
मई 2024 में आरोपी-याचिकाकर्ता पर 500 रूपये के नकली छह नकली नोट रखने का आरोप लगा, जिसका पता आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों ने कैश प्रोसेसिंग के दौरान लगाया था. शिकायत के आधार पर इस्लामपुर पुलिस ने आईपीसी की धारा 34 (समूह में मिलकर अपराध करना) और जाली करेंसी से जुड़े अपराध से जुड़ी धाराएं यानि 489-ए (करेंसी नोट या बैंक नोट की जालसाजी), 489-बी और 489-सी के तहत FIR दर्ज की.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने फरवरी और जनवरी 2024 में जमानत देने से इनकार कर दिया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.
दूसरी बार भी जब आरोपी को ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट से जमानत नहीं मिली. हालांकि इस बार हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि मुकदमे को साल भर के अंदर पूरा किया जाना चाहिए. लेकिन आरोपी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमानत देते हुए ये टिप्पणी की थी.
केस टाइटल: संग्राम सदाशिव सूर्यवंशी बनाम महाराष्ट्र राज्य
(खबर PTI इनपुट के आधार पर है)