सुप्रीम की नौ जजों की पीठ ने इस सवाल पर फैसला सुनाया कि क्या राज्य आम लोगों की भलाई की खातिर निजी संपत्ति को वितरित करने के लिए उन पर कब्जा कर सकता है. वर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ 8:1 की बहुमत से फैसला सुनाया है कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को समाज कल्याण के नाम पर अधिग्रहित नहीं कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस अय्यर की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच का फैसला बदल दिया है, जिसमें पीठ ने कहा था कि राज्य समाज कल्याण को लेकर सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने मामले को सुना है. इस पीठ ने कहा राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP) के आर्टिकल 39(b) के तहत राज्य कुछ संपत्ति को सामुदायिक संसाधन मानकर समाज कल्याण के लिए प्रयोग कर सकती है, लेकिन सभी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि हर निजी संपति को सामुदायिक भौतिक संसाधन' ( community resources) नहीं माना जा सकता है. कुछ खास संसाधनों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित के लिए कर सकती है, सभी संसाधनों का नहीं.
ऐसा कहकर सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान ने अपना पुराना फैसला पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को सरकार द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था. अब सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले के अनुसार निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को सरकार द्वारा अधिगृहीत नहीं किया जा सकता.
पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हुए. हालांकि इस फैसले से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने आंशिक रूप से असहमति जताई वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने पूरी तरह अपनी असहमति जताई. परिणामत: बहुमत का फैसला 8:1 से पारित हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने 1978 के बाद के उन फैसलों को पलटा जिनमें समाजवादी विषय को अपनाया गया था और कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है.
संविधान की आर्टिकल 39(बी) कहती है कि समुदाय के भौतिक संसाधन का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो, जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो. इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही थी कि क्या सरकार सभी निजी संपत्ति को समाज कल्याण के नाम पर दोबारा से बांट (Wealth Redistribution) सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला कहता था कि हां सरकार ऐसा कर सकती है, लेकिन नौ जजों की पीठ ने इस फैसले को पलट दिया है.
(खबर ANI इनपुट से लिखी गई है)