हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने 9 साल से जेल में बंद यूएपीए के आरोपी को राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपी के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई निकट भविष्य में पूरी होने की कोई संभावना नहीं है जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को कुछ शर्तों के साथ जमानत देने के निर्देश दिए हैं. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को शीघ्र सुनवाई का अधिकार है, अगर अभियोजन पक्ष मुकदमे की सुनवाई में तेजी नहीं दिखाती है तो उसे कथित अपराध गंभीर है ऐसा कहकर जमानत का विरोध करना उचित नहीं है. बता दें कि अपीलकर्ता (शेख जावेद) ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम जमानत की मांग को खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यूएपीए के आरोपी की जमानत की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. बेंच ने पाया कि 2015 के यूएपीए के मामले में अब तक दो लोगों की गवाही ही ली गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"मामले में अब तक केवल दो गवाहों के साक्ष्य दर्ज किए गए हैं. ऐसी परिस्थितियों में, यह उचित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है कि मुकदमे को पूरा होने में काफी समय लगने की संभावना है."
अदालत ने यह पाते हुए आरोपी के ऊपर लगी धारा आईपीसी की धारा 489सी में अधिकतम सजा सात साल की है,और मामले में अब तक केवल दो लोगों की गवाही हुई है, जिससे स्पष्ट है कि मुकदमा निकट भविष्य में पूरी नहीं होगी.
अदालत ने आगे कहा,
"आरोपी को केवल इस आधार पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप बहुत गंभीर हैं, जबकि मुकदमे को निकट भविष्य में समाप्त होने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है."
यह सामान्य कानून है कि आरोपी को शीघ्र सुनवाई का अधिकार है. इस अदालत ने अनेकों बार अपने फैसले में माना है कि अभियुक्त या विचाराधीन कैदी को शीघ्र सुनवाई का मौलिक अधिकार है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है. यदि कथित अपराध गंभीर है, तो अभियोजन पक्ष के लिए यह सुनिश्चित करना और भी अधिक आवश्यक है कि मुकदमा शीघ्रता से समाप्त हो.
अदालत ने आगे कहा.
जब मुकदमा लंबा चलता है, तो अभियोजन पक्ष के लिए इस आधार पर अभियुक्त-विचाराधीन कैदी की जमानत का विरोध करना संभव नहीं है कि आरोप बहुत गंभीर हैं. केवल इस आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप बहुत गंभीर हैं, हालांकि मुकदमे के समाप्त होता नहीं दिखाई पड़ता है.
किसी संवैधानिक न्यायालय को दंड विधान में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधानों के आधार पर किसी अभियुक्त को जमानत देने से नहीं रोका जा सकता है, यदि उसे लगता है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विचाराधीन अभियुक्त के अधिकार का उल्लंघन किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ अपीलकर्ता को जमानत देने की इजाजत दे दी है.
उत्तर प्रदेश एटीएस ने आरोपी शेख जावेद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC 1860) की धारा 121ए, 489बी और 489सी और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 16 के तहत FIR दर्ज की थी. आरोपी नेपाल का नागरिक है, उसे एटीएस की टीम ने 1,000 रुपये और 500 रुपये के नकली भारतीय नोट कुल मिलाकर 26,03,500.00 रुपये के साथ भारत-नेपाल बार्डर के पास से पकड़ा था.
गिरफ्तारी के दौरान आरोपी के पास से नकली भारतीय नोटों के अलावा एक नेपाली ड्राइविंग लाइसेंस, एक नेपाली नागरिकता प्रमाण पत्र और दो मोबाइल फोन बरामद किया गया. पुलिस के मुताबिक, अपीलकर्ता ने कबूल किया था कि वह नेपाल में नकली भारतीय नोटों की आपूर्ति के अवैध व्यापार में शामिल था. अपीलकर्ता को 23.02.2015 को गिरफ्तार किया गया था.
पुलिस ने पहले आरोप पत्र में 19.08.2015 को धारा 489बी और 489सी आईपीसी के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था. वहीं जब सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी तब आरोपी के खिलाफ यूएपीए की धारा 16 लगाई गई थी. मामले में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने 25.08.2015 को यूएपीए की धारा 16 के साथ धारा 489बी और 489सी आईपीसी के तहत अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी.
आईपीसी की धारा 489बी के अनुसार, जाली या नकली नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में इस्तेमाल करने के अपराध से संबंधित है, जबकि उसे पता है कि वे जाली या नकली हैं। ऐसे अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास या दस साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
आईपीसी की धारा 489सी के तहत अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति जाली या नकली नोटों या बैंक नोटों को अपने पास में रखता है, जबकि उसे पता है कि वे जाली या नकली हैं और उसे असली के रूप में इस्तेमाल करने का इरादा रखता है. ऐसे अपराध के लिए सजा सात साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है.
वहीं अपीलकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत खारिज करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आरोपी को राहत दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को निम्नलिखित शर्तों के साथ जमानत दे दी है;
(i) उच्च न्यायालय के दिनांक 03.04.2023 के विवादित आदेश को निरस्त किया जाता है;
(ii) अपीलकर्ता को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करने के अधीन जमानत पर रिहा करने कs निर्देश दिये जाते है:
(iii) यदि उपरोक्त जमानत शर्तों का कोई उल्लंघन होता है, तो अभियोजन पक्ष के लिए जमानत रद्द करने के लिए ट्रायल कोर्ट में जाने का विकल्प खुला होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त शर्तों के साथ आरोपी को जमानत दे दी है.
संवैधानिक अदालत Article 21 के उल्लंघन की संभावना पर आरोपी को जमानत देने का विचार कर सकती है: SC, शेख जावेद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य