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संविधान की प्रस्तावना से नहीं हटेंगे 'सोशलिस्ट और सेकुलर' शब्द, जानें किन कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने मांग याचिकाओं को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रहे हैं.

Written by Satyam Kumar |Updated : November 25, 2024 1:19 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि संसद को संविधान की प्रस्तावना को संशोधित करने की शक्ति है. बता दें कि इन याचिकाओं में संविधान के 42वें संशोधन में 'सोशलिस्ट और सेकुलर' शब्द को हटाने की मांग की गई थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा है. याचिका में इन शब्दों को हटाने की मांग को लेकर दावा किया गया कि गया था कि प्रस्तावना में संशोधन, बिना उसके डेट को संशोधित किए हुए किया गया है.

प्रस्तावना में बने रहेंगे सेकुलर और सोशलिस्ट

पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस (अब CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने प्रस्तावना में से 'सेकुलर और सोशलिस्ट' शब्द को हटाने की मांग याचिका को सुना था. उन्होने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को मानने से इंकार करते हुए कहा कि संसद को 'प्रस्तावना की डेट' में बदले बिना प्रस्तावना में संशोधन कर सकती है.

CJI ने कहा,

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"इस कोर्ट ने अपने फैसले में पहले ही कह चुकी है कि धर्मनिरपेक्षता (Secularism) संविधान का अभिन्न अंग रही है. कोई भी व्यक्ति संविधान के तीसरे पार्ट (मौलिक अधिकार) को गौर से देखेगा तो उसे वहां 'समानता और भाईचारा' शब्द मिलेगा, जो इस बात को साबित करती है 'सेकुलर' पहले से ही संविधान का अभिन्न हिस्सा है."

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या आप नहीं चाहते कि देश सेकुलर रहे! याचिकाकर्ता बलराम सिंह की ओर से पेश वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि हम ये नहीं कह रहे है कि भारत सेकुलर नहीं है. हम प्रस्तावना में किए संसोधन को चुनौती दे रहे है.

क्या है पूरा मामला?

याचिका में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य ने प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने की मांग की है. उन्होने कहा कि ये शब्द संविधान के मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं रही है, इसे 1976 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए 42वें संविधान संशोधन के तहत समाजवाद शब्द जोड़ा गया था.

सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल ये भी रखा गया है कि जब प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 में संविधान सभा ने स्वीकार किया था. तब बिना उस तारीख को बदले सीधे प्रस्तावना में बदलाव कर देना क्या सही था. मामले की अगली सुनवाई अब 18 नवंबर को होगी.