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Quo warranto क्या है, किसके विरुद्ध जारी की जाती है? जानिये इस Writ के बारे में विस्तार से

ऐसे मामलों में जहां अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है, आवेदन के संबंध में जनहित का प्रश्न उठना चाहिए.

Written by My Lord Team |Published : April 12, 2023 1:27 PM IST

नई दिल्ली: सरकारी नौकरी या पद पाने की इच्छा लोगो में इतनी ज्यादा होती है कि इसे पाने के लिए कुछ तो गैरकानूनी काम करने के लिए भी तैयार रहते हैं. ऐसे ही लोगों के खिलाफ एक वारंट जारी किया जाता है जिसे अधिकार पृच्छा कहा जाता है. आईए जानते हैं क्या है अधिकार पृच्छा (Quo Warranto) और इसे कौन जारी करता है. अधिकार पृच्छा के बारे में जानने से पहले हमें रिट के बारे में समझना होगा.

रिट एक लिखित औपचारिक ऑर्डर है जिसे किसी प्राधिकृत संस्था द्वारा जारी किया जाता है. हमारे देश में वो संस्था है हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट. रिट मूलत: पांच प्रकार के होते हैं. उन्ही में से एक है अधिकार पृच्छा (Quo Warranto).

अधिकार पृच्छा एक वारंट/ रिट है. इसका शाब्दिक अर्थ है-"आपका क्या अधिकार है.” यह रिट (किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जारी की जाती है, जो किसी सार्वजनिक कार्यालय में किसी पद पर अवैध तरीके से आसीन होता है. तो ऐसे में अदालत उसके खिलाफ उस विभाग को एक लेटर भेजती है जिसे अधिकार पृच्छा या अंग्रेजी में को वारंटो (Quo Warranto) कहा जाता है.

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इसके तहत अदालत ये पूछती है कि वो उस पद पर किस आधार पर काम कर रहा है, कब परीक्षा पास किया, कितना नंबर आया आदि इस तरह की जानकारी मांगती है. अगर किसी ने फर्जी तरीके से नौकरी प्राप्त की होती है तो उसे नौकरी से निरस्त कर दिया जाता है. यह एक प्रकार की कानूनी कार्रवाई है जिसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि किसी विशिष्ट व्यक्ति के पास उस सार्वजनिक कार्यालय में काम करने का कानूनी अधिकार है या नहीं.

अधिकार-पृच्छा क्यों जारी किया जाता है

यह किसी व्यक्ति के पद धारण करने के कानूनी अधिकार को निर्धारित करने के लिए किया जाता है, न कि ये जानने के लिए कि पद पर बैठा व्यक्ति कैसा प्रदर्शन कर रहा है. अगर एक न्यायालय को पता चलता है कि संबंधित व्यक्ति जो पद धारण कर रहा है, वास्तव में उस कार्यालय को धारण करने का हकदार नहीं है, तो वह अधिकार-पृच्छा 'रिट' जारी करता है और जिसके माध्यम से उस व्यक्ति को उस पद को धारण करने से रोकता है.

अधिकार-पृच्छा रिट कौन दायर कर सकता है

इस रिट के लिए कौन आवेदन कर सकता है, इस पर कोई रोक या प्रतिबंध नहीं है. कोई भी व्यक्ति तब तक आवेदन कर सकता है जब तक कि उनके मौलिक या किसी अन्य कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा हो. ऐसे मामलों में जहां अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है, आवेदन के संबंध में जनहित का प्रश्न उठना चाहिए.

आवेदन किसी छुपे हुए राजनीतिक संघर्ष या अंतर्धारा के लिए नहीं किया जाना चाहिए. आवेदक को जनहित में सोच कर ही यह कार्य करना चाहिए और आवेदन करने से किसी निजी लाभ या अनैतिक लाभ की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

अधिकार-पृच्छा की रिट जारी करने के आधार

अधिकार-पृच्छा रिट निम्नलिखित मामलों में जारी की जा सकती है: जब एक सार्वजनिक कार्यालय (कानून या संविधान द्वारा निर्मित) के किसी पद पर एक निजी व्यक्ति द्वारा कब्जा कर लिया जाता है, जिसके पास वास्तव में ऐसा करने का अधिकार नहीं होता है.

सार्वजनिक कार्यालय चरित्र में मूल होना चाहिए. कार्यालय से जुड़े कर्तव्य भी प्रकृति में सार्वजनिक होने चाहिए.

हड़पने वाला, जिसके अधिकार को चुनौती दी जा रही है, चुनौती दिए जाने के समय अपनी स्थिति को बनाए रखना चाहिए. यानि वह उस पद पर आसीन होना चाहिए.

भले ही कोई व्यक्ति एक समय में योग्य था, अगर वह अपनी योग्यता खो देता है तो उसके खिलाफ अधिकार-पृच्छा की रिट जारी की जा सकती है.

अधिकार-पृच्छा की रिट को कब अस्वीकार किया जा सकता है

जब न्यायालय के हस्तक्षेप से अंतिम परिणाम नहीं बदलेगा.

प्रतिवादी जब गलत तरीके से सार्वजनिक कार्यालय पर कब्जा नहीं करता है.

अमरेंद्र चंद्र बनाम नरेंद्र कुमार बसु, (1951)

इस मामले में कलकत्ता के एक स्कूल की प्रबंध समिति के सदस्य प्रतिवादी थे. अधिकार-पृच्छा के लिए आवेदन में उस प्राधिकार पर सवाल उठाने की प्रार्थना की गई थी जिसके द्वारा इन सदस्यों ने अपने पदों पर कब्जा किया था. न्यायालय ने कहा कि अधिकार- पृच्छा रिट एक निजी प्रकृति के कार्यालय पर लागू नहीं होगी.