नई दिल्ली: यौन शोषण एक ऐसा अपराध है जिसकी शिकार केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि छोटे बच्चे भी होते हैं. इस तरह के अपराध पर रोकथाम के लिए हमारे देश में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act- POCSO) है.
इस कानून के तहत वह व्यक्ति जो ऐसे अपराध को अंजाम देता है केवल वही अपराधी नहीं है बल्कि वह जिसके सामने या जिसकी जानकारी में यह सब अपराध हो रहा है और वह सब कुछ जानते हुए भी छुपाता है तो वह भी पॉक्सो एक्ट के धारा 21 के तहत अपराधी माना जाएगा. जानते हैं कि इस धारा में यह किस तरह के अपराध का उल्लेख है.
इसके अनुसार, अगर कोई पॉक्सो की धारा 19 की उपधारा 1 में या धारा 20 में बताए गए अपराध के बारे में रिपोर्ट करने में विफल रहेगा या जो धारा 19 (अपराधों की रिपोर्ट करना) की उपधारा 2 में बताए गए अपराध को रिपोर्ट करने में विफल हो जाता है तो वह दोषी माना जाएगा.
दोष सिद्ध होने पर उस व्यक्ति को छह महीने तक की जेल हो सकती है या जुर्माना देना पड़ सकता है या फिर दोनों ही सजा हो सकती है.
वही धारा 21 के उपधारा 2 में यह प्रावधान किया गया है अगर कोई कंपनी या संस्था अपने किसी कर्मचारियों के द्वारा धारा 19 के उपधारा 1 में बताए गए अपराध को दिए गए अंजाम को रिपोर्ट को नहीं करता है तो रिपोर्ट ना करने वाला व्यक्ति एक वर्ष तक के लिए कारावास के सजा का पात्र होगा और जुर्माना भी लगाया जाएगा.
आपको बता दें कि यह एक जमानती अपराध की श्रेणी में आता है यानि बेल मिल जाती है.
पिछले साल ही केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि धारा 21 के तहत दर्ज मामला जमानती अपराध की श्रेणी में आएगा. इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की पीठ ने कहा था कि यह धारा 21, धारा 19 और धारा 20 में बताए गए नियमों के उल्लंघन को दंडनीय बनाती है.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्त्री रोग विशेषज्ञ के खिलाफ पॉक्सो कानून की धारा 21 के तहत दर्ज आरोपों को खत्म करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया.
जानकारी के लिए आपको बता दें कि एक नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था. याचिकाकर्ता स्त्री रोग विशेषज्ञ ने पुलिस इसकी सूचना दिए बगैर ही नाबालिग पीड़िता की प्रेगनेंसी को टर्मिनेट कर दिया था.
खबरों के अनुसार, याचिकाकर्ता चिक्कमगलुरु में अस्पताल चलाती है. पीड़िता कुछ लोगों के साथ याचिकाकर्ता के अस्पताल में इलाज के लिए आई थी. उनलोगों ने चिकित्सक को बताया था कि उसने दो से तीन दिन पहले गर्भपात के लिए गोलियां ली थी. जिसके बाद से उसे बहुत ज्यादा रक्तस्राव हो रहा था.
याचिकार्ता ने उसका प्रेगनेंसी टर्मिनेट कर दिया, और इलाज के बाद पीड़िता को घर भेज दिया गया. पीड़िता के साथ आए लोगों ने खुद को पीड़िता का रिश्तेदार बताया था.
इस घटना के करीब एक महीने बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ पॉक्सो की धारा 21 के तहत शिकायत दर्ज किया गया. याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि पीड़िता के शरीर की बनावट ऐसी थी कि यह पता कर पाना मुश्किल था कि वह 18 साल से कम की है.
इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इसलिए माफ नहीं किया जा सकता क्योंकि इस अपराध की सजा छह महीने है या फिर बतौर एक स्त्री रोग विशेषज्ञ उन्होने सालों से जिम्मेदारी से काम किया है. बल्कि एक जिम्मेदार डॉक्टर होने के नाते उन्हे और ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.