नई दिल्ली: गांव हो या शहर ना जाने ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो आज भी घरेलू हिंसा की शिकार होती रहती हैं. हर दिन पतियों या ससुराल पक्ष के द्वारा पत्नियों के साथ मारपीट और दहेज हत्या के मामले सामने आते रहते हैं. कुछ मामले तो पुलिस स्टेशन तक पहुंचते हैं लेकिन कुछ बंद कमरे में ही रह जाते हैं. हमारे देश के कानून में ऐसे कृत्यों को बहुत क्रूर माना गया है, जिसके लिए सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया है.
इस तरह के अपराध को घरेलू हिंसा कहा जाता है. जिसके बारे में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) 1860 की धारा 498A में प्रावधान किया गया है.
आईपीसी की धारा 498A में बताया गया है कि अगर ससुराल में किसी भी महिला के साथ उसके पति द्वारा या पति के किसी भी रिश्तेदार के द्वारा किसी भी तरह की क्रूरता की जाती है तो वह अपराध माना जाएगा. ऐसे में पति या उसका कोई भी रिश्तेदार जिसने महिला को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया होगा उन्हे दोष साबित होने पर तीन साल के लिए जेल भेजा जाएगा है और जुर्माना भी देना होगा.
इस धारा में क्रूरता शब्द का प्रयोग किया गया है और यह भी बताया गया है कि इस तरह के अपराध में क्रूरता का अर्थ क्या है .
(A) अगर कोई पति या उसका कोई भी रिश्तेदार महिला के साथ कुछ ऐसा करता है वो भी जानबूझ कर जिससे महिला को मानसिक या शारीरिक रूप से चोट पहुंच सकता है या फिर वो आत्महत्या करने को विवश हो सकती है तो वह क्रूरता माना जाएगा.
(B) दहेज, हमारे समाज का एक ऐसा घिनौना रुप है जिससे कई बेटियों के माता- पिता अब तक दो चार हो चुके हैं. ऐसे लोग शादी से पहले तो दहेज की मांग करते ही हैं शादी के बाद भी दहेज के नाम पर महिलाओं और उसके घर वालों को परेशान करते हैं. अगर कोई महिला दहेज देने से इंकार कर देती है तो वो दहेज की बलि चढ़ जाती है.
दहेज के ऐसे ही लोभियों से बेटियों को बचाने के लिए इस धारा के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अगर किसी शादीशुदा महिला के माता-पिता, भाई-बहन या अन्य रिश्तेदार से पति या ससुराल पक्ष के द्वारा किसी संपत्ति या कीमती वस्तु (जैसे सोने के जेवर, मोटर-गाड़ी आदि) की गैर-कानूनी मांग पूरी करवाने के लिए या ऐसी मांग पूरी न करने के कारण उसे तंग किया जाता है तो वह क्रूरता माना जाएगा.
हाल ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने 'एचडी नवीन और कर्नाटक राज्य' केस में आईपीसी की धारा 498A (क्रूरता) के तहत एक पति की सजा को बरकरार रखा. अपनी पत्नी के उत्पीड़न के दोष में उसे सजा दी गई है. इस केस में सात लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया है, जिनमें से पति आरोपी नंबर एक है. जानकारी के अनुसार नवीन ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी.
जस्टिस रामचंद्र डी. हड्डर की सिंगल जज बेंच ने एचडी नवीन की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा, “आरोपी नंबर एक बेरोजगार है. शायद उसमें हीन भावना रही होगी, क्योंकि शिकायतकर्ता की पत्नी बीए, बीएड और स्नातक है इतना ही नहीं वो एक शिक्षक के रूप में कार्यरत भी है."
अदालत के कहा कि आरोपी नंबर एक और उसके परिवार के सदस्यों ने शिकायतकर्ता से गैरकानूनी मांग कर उसे परेशान किया होगा, शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया होगा.
मानसिक क्रूरता का असर हर व्यक्ति पर अलग - अलग
इस मामले में अदालत ने साफ कहा कि "मानसिक क्रूरता का असर हर व्यक्ति पर अलग- अलग होता है क्योंकि कि हर किसी में बर्दाश्त करने की क्षमता अलग होती है. कुछ तो साहस के साथ सामना कर सकते हैं और कुछ चुपचाप ही सहते हैं, कुछ के लिए यह असहनीय हो सकता है और जो कमजोर होते हैं वह अपना जीवन समाप्त करने के बारे में सोच सकते हैं."
''आजकल पति और पति के रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे ही अपराधों में वृद्धि के कारण, विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों की क्रूरता से बचाने के लिए आईपीसी की धारा 498A को 1983 में पेश किया गया था."
अदालत ने अभियुक्तों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही पाया, इसलिए कहा कि निचली अदालतों के आदेशों में कोई तथ्यात्मक या कानूनी त्रुटि नहीं है. अदालत ने दोषी ठहराए जाने पर जेल की सजा सुनाये जाने के बजाय जुर्माना लगाकर नरमी बरतने की आरोपी की दलील को खारिज कर दिया.