अनन्या श्रीवास्तव
देश के सभी नागरिकों के पास यह अधिकार है कि यदि उनके साथ कोई नाइंसाफी होती है, तो वो न्याय की मांग कर सकते हैं। न्याय पाने के लिए देश में न्यायपालिका है जिसके द्वारा आपको आपका हक दिलवाती है। न्यायतंत्र सहजता से काम कर सके और सभी लोगों के अधिकारों को संरक्षित रख सके, इसके लिए न्यायिक शक्ति को कुछ प्रशासनिक प्राधिकारियों के हाथों में भी सौंप दिया गया है।
इसी के चलते देश में अधिकरणों यानी ट्राइब्यूनल्स (Tribunals in India) को सेटअप किया गया है। लोक सेवकों से सम्बंधित मामलों के लिए किस तरह के अधिकरण की बात की गई है और इसके बारे में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323A (Article 323A of The Constitution of India) में क्या कहा गया है, आइए जानते हैं.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323A के तहत, 1985 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) की स्थापना की गई थी। कैट (CAT) एक वैधानिक निकाय है जिसे संविधान के 42वें संशोधन के तहत बनाया गया था। लोक सेवकों से सम्बंधित विवादों, शिकायतों और मामलों के लिए स्थापित इस निकाय को अनुच्छेद 323A के अनुसार, सिर्फ संसद द्वारा स्थापित किया जा सकता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 323A में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना की बात कही गई है और स्पष्ट किया गया है कि संसद को कानून के अनुसार, किस तरह एक प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना करनी है।
केंदीय प्रशासनिक अधिकरण
बता दें कि प्रशासनिक अधिनियम, 1985 (The Administrative Act, 1985) की धारा 4 के तहत एक केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और न्यायिक और प्रशासनिक सदस्य होने चाहिए जिन्हें देश के राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद नियुक्त करते हैं।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की देश में 17 पीठ और 21 परिपथ पीठ (Circuit Benches) होती हैं और केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पास खुद की अवमानना के खिलाफ एक्शन लेने का वही अधिकार है जो एक उच्च न्यायालय का होता है।
बता दें कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकान सिर्फ लोक सेवा से जुड़े मामलों के बारे में है; बाकी मामलों के लिए संविधान के अनुच्छेद 323B के तहत अधिकरणों की स्थापना की बात की गई है।