आज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अब सेवानिवृत हो चुके हैं. दूसरे शब्दों भारत के पूर्व CJI सीजेआई (Former CJI of India). उनके विदाई समारोह में अगले सीजेआई संजीव खन्ना ने उनकी प्रशंसा की. वहीं, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के प्रेसिडेंट कपिल सिब्बल से लेकर अभिषेक मनु सिंघवी तक ने CJI के तौर डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल को स्वर्णिम बताया. मौजूदा बार के साथियों ने तो उन्हें रॉकस्टार ऑफ ज्यूडिशियरी (Rockstar Of Judiciary) भी कहा. आइये हम जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के दस ऐतिहासिक फैसले के बारे में जानते हैं, जिसने देश की दशा और दिशा, दोनों बदली. लोगों के मौलिक अधिकार को बरकरार रखा. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दो साल के लिए सीजेआई रहे हैं. मैने उपरोक्त जजमेंट में कही जस्टिस तो कहीं सीजेआई लिखा है, जो उस फैसले देने के वक्त सुप्रीम कोर्ट में उनकी भूमिका के अनुरूप है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को विचार करना था कि क्या निजता का अधिकार भारत के संविधान, 1950 के तहत एक मौलिक और अनुल्लंघनीय अधिकार (Fundamental and Inviolable Rights) है?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या लिखा: 24 अगस्त 2017 के दिन जस्टिस केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (Justice KS Puttaswamy vs Union of India) मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से प्राइवेसी के अधिकार को लोगों का मौलिक अधिकार माना. अपने फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि निजता का अधिकार, देश के नागरिकों के आत्मसम्मान और स्वायत्तता जुड़ा है. सीजेआई ने कहा कि निजता (Privacy) संविधान की आर्टिकल 21 के तहत मिले गरिमापूर्ण जीवन जीने के मौलिक अधिकार में ही निहित है.
बता दें कि प्राइवेसी का मामला आधार मामले से उत्पन्न हुआ था, जिसमें मु्ख्य सवाल था कि क्या लोगों के बायोमैट्रिक डेटा को रिकार्ड करके रखना निजता के अधिकार का उल्लंघन है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट, 2016 के कुछ प्रावाधानों को रद्द करते हुए संवैधानिकता को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना था कि क्या आईपीसी की धारा 377 सेम सेक्स रिलेशन को अपराध बनाकर LGBTQI+ के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं?
6 सितंबर 2018 के दिन, नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (Navtej Singh Johar vs Union of India) मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से आंशिक तौर पर आईपीसी की धारा 376 को खारिज कर दिया. आईपीसी, 1860 की धारा 376 के अनुसार, सेम सेक्स रिलेशन (समलैंगिकता) को अपराध घोषित करता था. वहीं, पशुगमन (bestiality) को अपराध के रूम में बरकरार रखा.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लिखा कि मानव कामुकता (Human Sexuality) को आप केवल बाइनरी रूप (पुरूष और महिला) में ही डिफाइन नहीं कर सकते है, ना ही इसके प्रजनन कार्य को संकीर्ण रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता है. सीजेआई ने अपने फैसले में आगे कहा कि यह दृष्टिकोण मानव यौन अभिव्यक्ति की जटिलता और विविधता को उजागर करता है, पारंपरिक रूपरेखाओं से परे व्यापक समझ की मांग करता है.
रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया एवं अन्य मामले (Secretary, Ministry of Defence vs Babita Puniya and Others) में न्यायालय ने महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने को मंजूरी दे दी है. यहां स्थायी कमीशन का अर्थ रिटायरमेंट तक सेना में सेवा देने का अधिकार है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने जेंडर स्टीरियोटाइपिंग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि महिलाओं को पुरूषों से कमतर आंकना गलत है.फैसले के बाद महिलाओं को सेना के सभी दस सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन मिलने का रास्ता बना.
सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म के चलते महिलाओं के प्रवेश निषेध का रिवाज समानता और भेदभाव के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन है?
28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म वाली महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने की प्रथा को असंवैधानिक घोषित करार दिया. इस रिवाज को समानता के अधिकार और भेदभाव केविरुद्ध अधिकार के उल्लंघन बताया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मामले में अपनी राय बहुमत के फैसले रखी.
सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना का था कि क्या सुननी वक्फ बोर्ड, निरमोही अखाड़ा और राम लला के बीच अयोध्या भूमि का बंटवारा करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सही है?
बता दें कि इस मामले में जजमेट के ऑथर का नाम जाहिर नहीं किया गया था. 9 नवंबर 2019 के दिन, एम सिद्दीक बनाम महंत सुरेश दास (M Siddiq v Mahant Suresh Das) मामले में, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें बाबरी मस्जिद के बीच राम जन्मभूमि स्थल का स्वामित्व विभाजित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने यह अधिकार भगवान श्री राम विराजमान को दे दिया था. इस पांच जजों की संवैधानिक पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या दिल्ली एक संघीय क्षेत्र (Union Territory) के रूप में मानकर उपराज्यपाल को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए या एक स्पेशल राज्य जहां, उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह के आधार पर काम करना चाहिए?
4 जुलाई, 2018 को दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (Government of NCT of Delhi vs Union of India) मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि दिल्ली सरकार का कार्यकारी मुखिया उपराज्यपाल नहीं बल्कि मुख्यमंत्री है. यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 239AA की व्याख्या पर आधारित था, जो दिल्ली के लिए विशेष प्रावधानों की रूपरेखा तैयार करता है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भीतर शासन संरचना और अधिकार को स्पष्ट करता है. उस वक्त के सीजेआई दीपक मिश्रा ने इस फैसले को लिखा था, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पांच जजों की पीठ में शामिल थे. हालांकि इससे जुड़ा एक मामला और है जिसे सीजेआई की अगुवाई में लिखा गया है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रतिदिन के प्रशासन और लोक सेवकों की देखरेख का जिम्मा दिल्ली सरकार के ऊपर है ना कि केन्द्र के पास.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है?
11 दिसंबर, 2023 को संविधान के अनुच्छेद 370(In Re: Article 370 of the Constitution) को पुन: बहाल करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त (Nullified) करने के फैसले को बरकरार रखा. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की पीठ ने इस फैसले को लिखा. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का हिस्सा था और विशेष दर्जे को असममित संघवाद (Asymmetric federalism) बताया.
29 सितंबर 2022 के दिन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों पीठ ने X बनाम मुख्य सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, दिल्ली एनसीटी सरकार ( X v. The Principal Secretary Health and Family Welfare Department, Delhi NCT Government and anr) मामले में कुंवारी लड़की या अविवाहित को 24 सप्ताह से ज्यादा दिन के गर्भ को समाप्त कराने की इजाजत दिया. यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसला से अविवाहिता महिला को 24 सप्ताह से ज्यादा दिन की प्रेग्नेंसी को समाप्त करने का अधिकार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही अविवाहित महिला ने सहमति से संबंध बनाए हो, उसे 24 सप्ताह से ज्यादा की प्रेग्नेंसी समाप्त करने का अधिकार है. बता दें कि MTP Act में केवल विवाहिता महिला को ही 20 सप्ताह से लेकर 24 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की इजाजत देती है.
इसमें सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक है? क्या यह मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है? क्या इलेक्टोरल बॉन्ड फ्री एंड फेयर इलेक्शन के लोकतांत्रिक प्रक्रिया को चुनौती देता है?
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ (Association for Democratic Reforms v Union of India) मामले में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मतदाताओं के सूचना के अधिकार के उल्लंघन का हवाला देते हुए 2018 की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को सर्वसम्मति से रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने के साथ-साथ एसबीआई (SBI) को फंडिंग के आंकड़ों का खुलासा करने का आदेश दिया.
1 अगस्त, 2024 को पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (State of Punjab v Davinder Singh) में सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण बना सकती हैं. हालांकि राज्य जाति के लिए तय आरक्षण में उपजातियों को ही 100% नहीं दे सकती है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उपजातियों को आरक्षण देने से पहले राज्य को उपजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में डेटा भी जारी करना पड़ेगा.
बता दें कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के CJI रहते ना सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ऐतिहासिक फैसले सुनाए बल्कि सुप्रीम कोर्ट में आधुनिकता को लाया भी गया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ही सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को लाइव टेलीकास्ट शुरू करने की पहल की थी. बीते दिन सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी कार्य दिवस था, आज से वे रिटायर हुए.