Reservation Within Category: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों-जनजातियों के अंदर सब कैटेगरी के लिए आरक्षण तय करने को मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में अपने साल 2004 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले को पलट दिया है जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर सब कैटेगरी बनाने की अनुमति नहीं दी गई थी, साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कैटेगरी के भीतर सब-कैटेगरी को मंजूरी देते हुए तय आरक्षण में से भी सीटें आरक्षित करने के निर्देश दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने राज्य को कोटा के भीतर कोटा रिजर्वेशन को स्वीकृति दे दी है. हालांकि राज्य जाति के लिए तय आरक्षण में उपजातियों को ही 100% नहीं दे सकती है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उपजातियों को आरक्षण देने से पहले राज्य को उपजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में डेटा भी जारी करना पड़ेगा. इस पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस मनोज मिश्रास जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ सिंह, जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल रहें. सर्वोच्च न्यायालय की सात जजों की बेंच ने 6:1 से इस फैसले को पारित किया है. पीठ में केवल जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई है.
सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ दो पहलुओं पर विचार कर रही थी;
2004 के ई.वी. चिन्नैया मामले में जस्टिस एन. संतोष हेगड़े, एस.एन. वरियावा, बी.पी. सिंह, एच.के. सेमा, एस.बी. सिन्हा की पीठ ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 341(1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश में सभी जातियां एक ही वर्ग की हैं और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने कैटोगरी के अंदर सब-कैटोगरी के आरक्षण को अनुमति दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटा प्रस्तावित करने के फैसले को मंजूरी दी है जिससे आरक्षण का लाभ समाज के सबसे निचले हिस्से तक पहुंच सके.
भारतीय राजनीति में आरक्षण जातियों के आधार पर मिली है जिसमें जनरल, ओबीसी, एससी और एसटी आदि आते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी जाति के लिए 'कोटा के भीतर कोटा' आरक्षण को स्वीकृति दी है. एससी या एसटी के Umbrella टर्म है या एससी के अंदर भी कई उपजातियां (सब कैटोगरी) आती है, जिनके लिए कुल एससी आरक्षण में से उपजातियों के लिए भी सीटें या प्रतिशत तय की जाएगी. इन तय सीटों या प्रतिशत में केवल वहीं उपजातियों से आनेवाले लोगों का चयन होगा.
मामला पंजाब सरकार से जुड़ा है, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित करके पेश करने की नीति बनाई थी. दो श्रेणियो में एक बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए, तो दूसरा बाकी अनुसूचित जाति के लिए थी. पंजाब सरकार का ये नियम तीस साल तक चला.
उसके बाद यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के फैसले का हवाला देते हुए आरक्षण को खारिज कर दिया. कारण- कैटेगरी के बीच सब-कैटेगरी बनाने को मंजूरी नहीं दी जा सकती है, यह समानता का उल्लंघन है. परिणामत: नीति को खारिज कर दिया गया.
2006 में पंजाब सरकार ने फिर से पंजाबी सिख और मजहबी सिख के लिए दोबारा से कानून बनाया. पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार के इस नियम को दोबारा से खारिज कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
सबसे पहले पांच जजों की बेंच ने इस मामले को सुना. बेंच के सामने पंजाब सरकार ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले (ओबीसी के भीतर सब कैटेगरी को मंजूरी दी गई थी) का हवाला दिया. पंजाब सरकार ने तर्क दिया कि इस आधार पर इसकी मंजूरी दी जानी चाहिए.
अब 2020 में पांच जजों की बेंच पाया कि 2004 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले को बड़ी बेंच द्वारा विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने इस मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजा. इसी साल फरवरी महीने में सात जजों की बेंच ने तीन दिन तक सुनवाई कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने आज सुबह यानि 1 अगस्त को सुनाया है.