नई दिल्ली: विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जिसे त्योहारों और उत्सवों का देश कहा जाता है. यहां हर धर्म के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार अपना त्योहार और उत्सव मनाते है. जिस तरह हम त्योहारों के मौके पर उत्सव का कोई मौका नहीं छोड़ते, उसी तरह से अपने अधिकारों और मांगो को लेकर भी प्रदर्शन करते हैं. लेकिन उत्सव और इन प्रदर्शनों के दौरान शांति व्यवस्था बनी रहें, इसके लिए देश के कानून में कई प्रावधान किए गए है.
देश में जलूस या प्रदर्शन के दौरान किसी तरह का हथियार लेकर जाना एक अपराध घोषित किया गया है. आईपीसी की धारा 153 AA में इससे जुड़े अपराध की जानकारी दी गई है.
हमारे देश में जलूस निकालना या प्रदर्शन करना कोई अपराध नहीं बल्कि इसकी पूरी आजादी है लेकिन तब तक जब तक इससे कोई दंगा फसाद या समाज की शांति भंग ना हो यानि कि किसी को कोई नुकसान ना हो. IPC की धारा 153AA में इसी तरह के होने वाले अपराधों के बारे में बताया गया है.
इस धारा के अनुसार "किसी जलूस में जानबूझकर आयुध (arms) ले जाना या किसी सामूहिक ड्रिल (mass drill) या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध ( mass training with arms) सहित संचालन या आयोजन करना या उसमें भाग लेना एक अपराध है.
जो कोई व्यक्ति किसी विधिविरुद्ध जुलूस अथवा किसी सार्वजनिक स्थान पर, जानबूझकर आयुध या शस्त्र लेकर जाता है अथवा आयुध सहित संचालन या आयोजन करता या उसमे भाग लेता है तो वह व्यक्ति IPC की धारा 153 AA के अंतर्गत दंड का भागीदार होगा.
कई बार जलूस और प्रदर्शन के दौरान जिला मजिस्ट्रेट या स्थानीय मजिस्ट्रेट शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए CrPC की धारा 144A के तहत लोक सूचना जारी करते हैं. जब कोई व्यक्ति इस आदेश का उल्लंघन करते हुए किसी जलूस में जानबूझकर आयुध ले जाता है या सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित जानबूझकर संचालन या आयोजन करता है या उसमें भाग लेता है तो वह अपराधी माना जाएगा.
दूसरे शब्दों में, किसी सार्वजनिक स्थान पर जहां धारा 144A लागू है वहां कोई जलूस निकाला जा रहा हो और उसमें जानबूझ कर कोई हथियार लेकर जाए या भीड़ को हथियार चलाना सिखाए, तो यह एक अपराध माना जाएगा.
जुलूस और उत्सव को लेकर किए गए इन प्रावधानों के विपरीत जब कोई व्यक्ति आदेश की अवहेलना करता है और दोषी पाए जाने पर उसे छह माह तक जेल की सजा दी जा सकती है. इसके साथ ही उस पर 2 हजार रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
यह एक गैर-जमानतीय और संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है. इस तरह के अपराध समझौता योग्य नहीं होते है.
इस तरह के अपराध करने वाले व्यक्ति के अपराध के अनुसार ही मामले में पुलिस द्वारा FIR दर्ज की जाती है, यह अपराध गैर-जमानतीय होने के कारण जमानत आसानी से नही मिलती.