BNSS Section 181 And 182: भारत में अक्सर में थर्ड डिग्री की चर्चा होती है. थर्ड डिग्रीं हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ पुलिस का सख्ती से पेश आने कहा जाता है. कानूनविदों के अनुसार, पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति से दुर्व्यवहार, मानसिक व शारीरिक यातना देना शामिल है. ऐसे में गिरफ्तार व्यक्ति अगर पुलिस को कोई बयान देता है, बोलकर या लिखकर, तो क्या वह अदालत में मान्य होगा. क्या बयान को आरोपी के खिलाफ प्रयोग किया जा सकता है? तो आइये जानते हैं कि 1 जुलाई से लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 इस लेकर क्या कहती है. पुलिस हिरासत में आरोपी से कैसे बयान लिया जाना चाहिए? तो आइये जानते हैं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 180, धारा 181 और धारा 182 क्या कहती है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 180 (1) : पुलिस अधिकारी को किसी मुकदमे से संबधित गवाहों, पत्यक्षदर्शी लोगों से पूछताछ करने का अधिकार देती हैं. इसमें पूछताछ करनेवाले पुलिस अधिकारी की रैंक की बात भी की गई है.
बीएनएस की धारा 180 (2): प्रत्यक्षदर्शी या गवाहों को सही बयान देना या सच्चाई बतानी पड़ेगी, साथ ही वह ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने से मना भी कर सकता है जिसके चलते उसे परेशानी करना सामना करना पड़े.
बीएनएस की धारा 180(3) : पुलिस अधिकारी बयान को लिखित में भी दर्ज कर सकते हैं. नए कानून में ऑडियो-विजुअल मीडियम तरीके से भी रिकार्ड किया जा सकता है. महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में महिला पुलिस अधिकारी ही बयान दर्ज कर सकती है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 181 (1): अगर पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति या आरोपी का बयान लिखित में दर्ज करवाती है, तो उस बयान के नीचे व्यक्ति का हस्ताक्षर नहीं करवाया जा सकता है.
वहीं अगर अभियोजन पक्ष द्वारा लिया गया बयान को अदालत के सामने लाया जाता है, दूसरे पक्ष को भी उस बयान को क्रॉस-एग्जामिनेशन करने का मौका दिया जाएगा.
बीएनएसएस की धारा 182 के अनुसार पुलिस किसी आरोपी का बयान प्रलोभन, धमकी या वादे के आधार पर नहीं लिया गया हो और वह आरोपी अपनी स्वेच्छा से दिया हो. वहीं अगर पुलिस ने किसी जोर-जबरदस्ती से आरोपी से बयान लिया है तो ये बयान अदालत में मान्य नहीं होंगे.