Advertisement

फर्स्ट जेनरेशन लॉयर्स व गैर-NLUs छात्रों को लॉ फर्मों में जगह मिलना मुश्किल! बार एनरोलमेंट फी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

बार एनरोलमेंट फी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पेशे में आनेवाले नए लॉयर्स को होनेवाली कठिनाइयों पर चर्चा की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फर्स्ट जेनरेशन लॉयर, समाजिक तौर पर हाशिये से आने वाले और गैर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) से पढ़े ग्रेजुएट का लॉ फर्मों व किसी बड़े वकील के चैंबर में एंट्री ही काफी मुश्किल है

Written by Satyam Kumar |Published : July 31, 2024 12:22 PM IST

First Generation Lawyers And Non NLU Graduates:  सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही थी कि क्या बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) या राज्य बार काउंसिल (SBC) एडवोकेट के एनरोलमेंट फी को बढ़ा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने समाजिक आधार और एडवोकेट एक्ट के प्रावधानों पर विचार कर बार काउंसिल से जुड़ने वाले एडवोकेट के एनरोलमेंट फी को नहींं बढ़ा सकती है. एनरोलमेंट फी, बार में रजिस्टर्ड होने के लिए देय नामांकन राशि है. इस मामले की बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नए लॉयर्स को होनेवाली कठिनाइयों पर चर्चा की. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कानूनी पेशे में यंग लॉयर्स को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ता है जिसके बाद जाकर वे अपना नाम बनाने में सफल हो पाते हैं.

फर्स्ट जेनरेशन लॉयर्स व गैर- एनएलयू संस्थान से पढ़े छात्रों का लॉ फर्मों में प्रवेश मुश्किल : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ अधिवक्ताओं से लिए जाने वाले एनरोलमेंट फी मामले की सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि काउंसिल द्वारा बार में एनरोलमेंट के लिए लिया जाना वाला फी एडवोकेट एक्ट के तय प्रावधानों से अधिक नहीं हो सकता है. इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने फर्स्ट जेनरेशन लॉयर्स और गैर-NLUs से पढ़े छात्रों को होनेवाली परेशानी का जिक्र किया. अदालत ने गौर किया कि इन छात्रों को लॉ फर्मों में जगह बनाने और किसी सीनियर वकील के चैंबर में जगह पाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है या उनकी जगह ही मुश्किल से बनती है

अदालत ने कहा,

Also Read

More News

"यंग लायर्स, जो हाल ही में ग्रेजुएट हुए हैं, अपने जगह और चैंबर के अनुसार दस से पचास हजार रूपये कमाते हैं. लेकिन असली संघर्ष इन स्नातकों के लिए उन चैंबर में जगह बनाना होता है. कानूनी पेशे का ढ़ांचा ऐसा होता जा रहा है  कि फर्स्ट जेनरेशन लॉयर, समाजिक तौर पर हाशिये से आने वाले और गैर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) से पढ़े ग्रेजुएट का इन चैंबर में एंट्री ही काफी मुश्किल है."

अदालत ने आगे कहा,

"हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि दलित समुदाय से आनेवाले  कानून के छात्रों को अंग्रेजी भाषा में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जिससे उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने के उनके अवसर कम हो जाते हैं, जहां अदालती कार्यवाही अंग्रेजी में होती है और ऐसे में एनरोलमेंट फीस के नाम पर अत्यधिक शुल्क का भुगतान करने की शर्त कई लोगों के लिए एक और परेशानी उत्पन्न करती है."

अदालत ने एनरोलमेंट फी बढ़ाने के फैसले को समाजिक स्तर पर एक बाधा के तौर पर पाते हुए फी को एडवोकेट एक्ट के मुताबिक रखने के निर्देश दिए.

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने एस शेषचलम बनाम तमिलनाडु बार काउंसिल मामले में जस्टिस आर भानुमति के फैसले का भी जिक्र किया,  जिसमें लॉ फ्रेशर की वकालती पेशे में एंट्री को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई है.  शेषचलम मामले में अदालत ने पाया  कि फ्रेशर लॉ ग्रेजुएट को वकालती प्रैक्टिस के शुरूआत में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं. उन्हें क्लाइंट पाने के लिए एक लंबे समय तक कतार में खड़े होना होता है. कुछ तो इस पेशे में अधिकांश जीवन संघर्ष करने में ही बिता देते हैं.

अदालत ने कहा,

"कानून का पेशा एक महान पेशा है। इस पेशे में सफल होने के लिए कानूनी बिरादरी दिन-रात मेहनत करती है। हालांकि यह सच है कि धीरे-धीरे आगे बढ़ना किसी भी पेशे में, जिसमें कानून भी शामिल है, आदर्श है, लेकिन शुरुआत में युवा वकीलों को लंबे समय तक कतार में रहना पड़ता है और अधिक कठिनाइयों से जूझना पड़ता है. बेहद प्रतिभाशाली होने के बावजूद, कई युवा वकीलों को अपने पेशे में उचित अवसर या अनुभव नहीं मिल पाता है."

अदालत ने आगे कहा, 

पेशे के शुरुआती चरणों में पेशे में नए ग्रेजुएट को कम वजीफा मिलता है, जो युवा वकीलों को अपने शुरुआती वर्षों में मिल सकता है, साथ ही इस संबंध में कोई कानून न होने के कारण, उन्हें अपने भोजन, आवास, परिवहन और अन्य जरूरतों का प्रबंधन करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. अपने प्रयासों के बावजूद, वे अपने पेशे में आगे नहीं बढ़ पाते हैं. कई वर्षों की कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद ही कुछ भाग्यशाली वकील अपना नाम बना पाते हैं और पेशे में सफलता प्राप्त कर पाते हैं.

अदालत ने ये भी कहा,

"कानूनी बिरादरी के अधिकांश लोगों के लिए, हर दिन एक चुनौती है. मुश्किल समय के बावजूद, जो वकील नामांकन के तुरंत बाद प्रैक्टिस शुरू कर देता है, उसे पेशे में जमने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. कुछ वकील जीवन भर संघर्ष करते रहते हैं, फिर भी पेशे में बने रहना चुनते हैं. यह कुछ ऐसा है जैसे “हवा के विपरीत दिशा में साइकिल चलाना.”

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संबंधित अन्य फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि बार काउंसिल या राज्य बार काउंसिल द्वारा  एनरोलमेंट फी बढ़ाना अनुचित हैं.