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बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्तियों के बीच समझौता - जानिए मोटर वाहन अधिनियम की धारा 152 के तहत नियम

हादसे कब जीवन में दस्तक दे जाएं, ये कोई नहीं जानता, इसलिए लोग अपने कल को आज सुरक्षित करते हैं बीमा करवा कर ताकि भविष्य में होने वाले हानि की भरपाई की जा सके.

Written by My Lord Team |Published : February 20, 2023 8:48 AM IST

नई दिल्ली: आए दिन सड़क हादसों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है, जिसके कारण लोगों के मन में एक डर सा बैठ गया है कि अगर ऐसा कुछ उनके साथ हो गया तो उनके बाद उनके परिवार का क्या होगा और नुकसान की भरपाई कैसे होगी. इसी अनजाने भय को देखते हुए ही लोग उससे सुरक्षा की तैयारी बीमा द्वारा कर लेते हैं. बीमा एक ऐसा जरिया जिसके द्वारा कुछ शुल्क देकर भविष्य में होने वाली हानि का जोखिम होने पर दूसरे पक्ष पर डाला जा सकता हैं और काफी हद तक नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. यह एक तरह का कानूनी एग्रीमेंट होता है. बीमा की प्रकृति के अनुसार इसमें कुछ नियम होते हैं, जिसके तहत होता है बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्तियों के बीच समझौता. इसका जिक्र मोटर वेहिकल अधिनियम 1988 की धारा 152 में किया गया है.

बीमा का अर्थ

बीमा दो पक्षों के बीच एक ऐसा प्रसंविदा है जिसमें एक पक्ष जो बीमा करता है उसे बीमाकर्ता (Insurance) कहते हैं, दूसरे पक्ष जो बीमा करवाता है वह बीमाकृत या बीमादार या बीमित व्यक्ति कहते है. लाभकारी (Beneficiary) को जो एक निश्चित प्रतिफल देता है उसे प्रीमियम (Premium) कहते है. बीमाकर्ता  बीमाकृत को जिस प्रकार की बीमा करवाई गई है उसके तहत जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है उनेक घटित होने पर एक निश्चिम रकम (Insurance) के भुगतान का वचन देता है.

बीमाकर्ता

बीमाकर्ता को 'बीमा कंपनी' भी कहा जाता है, वह संस्था है जो जोखिम को स्वीकार करती है और पॉलिसी अवधि के भीतर होने वाले नुकसान के लिए भुगतान करने का वादा करती है. बीमाकर्ता नियमित रूप से भुगतान किए गए प्रीमियमों के बदले में हानि के लिए भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध है.

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बीमाकृत

यहां बीमाकृत उसे कहते हैं जो बीमा करवाता है. यानि बीमाकृत, पॉलिसीधारक या हानि या दावे के मामले में संरक्षित व्यक्ति को दर्शाता है.

बीमाकर्ता और बीमाकृत के बीच समझौता

हर बीमा के कुछ नियम होते हैं उस नियम के तहत बीमाकृत बीमा क्लेम कर सकता है. जिसके बारे में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 152 में बताया गया है. इन दोनों के बीच समझौते का क्या नियम है उसके बारे में धारा 152 में बताया गया है. उसे समझने से पहले हमे मोटर वाहन बीमा को समझना होगा.

कार, वैन, मोटर साइकिल, स्कूटर आदि का बीमा, दुर्घटना से वाहन को होने वाली क्षति, चोरी से होने वाली हानि और दुर्घटना के कारण तीसरे पक्ष को चोट पहुंचने अथवा मृत्यु हो जाने से उत्पन्न नुकसान के विरूद्ध कराए जाने वाले बीमा को मोटर वाहन बीमा कहते है. वास्तव में वाहन का तीसरे पक्ष के संबंध में बीमा अनिवार्य है.

धारा 152 के अनुसार बीमाकर्ता और बीमाकृत के बीच समझौता

  1.  किसी ऐसे दावे के बारे में, जो धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकार के किसी दायित्व की बाबत पर व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, किसी बीमाकर्ता द्वारा किया गया कोई समझौता तभी विधिमान्य होगा जब  ऐसा पर -व्यक्ति उस समझौते का पक्षकार है, अन्यथा नहीं.
  2. जहां वह व्यक्ति, जिसकी बीमा इस अध्याय के प्रयोजन के लिए दी गई पालिसी के अधीन किया गया है, दिवालिया हो गया है अथवा जहां उस दिशा में, जिसमें ऐसा व्यक्ति कंपनी है, उस कंपनी के परिसमापन के लिए आदेश दे दिया गया है अथवा उसके स्वेच्छया परिसमापन के लिए संकल्प पारित कर दिया गया है वहां, यथास्थिति, पर - व्यक्ति के प्रति दायित्व उपगत हो जाने के पश्चात अथवा दिवाले या परिसमापन के प्रारंभ के पश्चात न तो बीमाकर्ता  और बीमाकृत व्यक्तियों के बीच किया गया कोई करार और न पूर्वोत्तर प्रारंभ के पश्चात बीमाकृत व्यक्ति द्वारा कोई अधित्यजन, समनुदेशन या अन्य व्ययन, अथवा बीमाकृत व्यक्ति को की गई कोई अदायगी, उन अधिकारों को विफल करने के लिए प्रभावी होगी जो पर व्यक्ति को इस अध्याय के अधीन अंतरीत है बल्कि वे अधिकार वैसे ही रहेंगे मानो ऐसा कोई करार, अधित्यजन, समुनदेशन या व्ययन या अदायगी नहीं की गई है.