
यूसीसी (Uniform Civil Code)
उत्तराखंड में हाल ही में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू हुआ है. यूसीसी को चुनौती देते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट में तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इन तीन याचिकाओं में से एक याचिका मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव, दूसरा लिव इन रिलेशनशिप में प्राइवेसी के हनन और तीसरा तलाक विवाह और लिव इन के प्रावधानों को चुनौती देता है.

लिव-इन-रजिस्ट्रेशन को चुनौती
लिव इन रिलेशनशिप को चुनौती देते हुए दावा किया कि यूसीसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं. इस सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कई घटनाओं ने दिखाया है कि बिना किसी प्रतिबद्धता के लिव-इन संबंधों में रहने से आमतौर पर पुरुष महिला को छोड़ देता है.

किसका होगा बच्चा?
लिव इन रिलेशनशिप में हुए पैदा हुए बच्चे का गार्जियन कौन होगा? यूसीसी लिव-इन-रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन कराकर इन सब को प्रतिबद्ध करती है. इस पंजीकरण के आधार पर, ऐसे संबंध से जन्मे बच्चे को समान नागरिक संहिता के तहत वैध बच्चे के रूप में माना जाता है और पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी तय की जाती है. बता दें कि यूसीसी में अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी समान्य बच्चों की तरह दर्जा दिया जाएगा, और उन्हें भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा.

मुसलमानों की रिश्तेदारी में शादी पर रोक
मुसलमानों के लिए यूसीसी को भेदभावपूर्ण बताने वाली याचिका में दावा किया गया कि मुसलमान समुदाय में रिश्तेदारों के बीच विवाह की अनुमति है, जबकि समान नागरिक संहिता इसके लिए प्रतिबंध लगाती है. उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत 'प्रतिबंधित संबंधों के डिग्री' को परिभाषित किया गया है, जो मुसलमानों की परंपराओं के खिलाफ है

करीबी रिश्तेदारों से शादी नहीं?
राज्य सरकार की ओर से वकील तुषार मेहता ने कहा कि समान नागरिक संहिता के अनुसूची 1 और 2 में प्रतिबंधित संबंधों के डिग्री को परिभाषित किया गया है, जिसमें माता, सौतेली माता, बेटी और अन्य करीबी रिश्तेदार शामिल हैं. एसजी ने कहा कि ऐसे करीबी रिश्तेदारों के बीच विवाह को कानून द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए और किसी सभ्य समाज में इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.

शादी करने का मौलिक अधिकार!
याचिकाकर्ताओं के वकील, कर्तिकेय हरि गुप्ता ने तर्क किया कि एक मुसलमान पुरुष को अपनी मां की बहन की बेटी या मां के भाई की बेटी से विवाह करने की अनुमति देने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने उत्तर दिया कि यदि याचिकाकर्ता इस आधार पर सफल होना चाहते हैं, तो उन्हें यह दिखाना होगा कि किसी व्यक्ति का अपनी बहन से विवाह करने का मौलिक अधिकार है.

Uttarakhand HC
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जनजातियों पर छूट भेदभावपूर्ण
एक अन्य याचिका केअनुसार, यूसीसी अधिनियम भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह अनुसूचित जनजातियों के लोगों को छूट देता है. इस पर मेहता ने कहा कि समान नागरिक संहिता अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों पर लागू नहीं होती है.

केन्द्र और उत्तराखंड सरकार दें जबाव
हालांकि, उत्त्तराखंड हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इन याचिकाओं पर छह सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है.